Thursday, October 21, 2021

पतंजलि साधन पाद सूत्र 51 - 55 तक

 


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 51

अष्टांगयोगका चौथा अंग प्राणायाम

भाग - 3 >चौथे प्रकारका प्राणायाम

" बाह्य आभ्यंतर बिषय आक्षेपी चतुर्थः "

रेचक - पूरक को छोड़ आगे बढ़ जाने वाला प्राणायाम जिसे हठ प्रदीपिका में केवली प्राणायाम कहते हैं । बिना रेचक - पूरक किये सीधे सूक्ष्म कुम्भक स्थिति में योगी पहुंच जाता है और देर तक श्वास रुक जाती हैं । 

अर्थात बिना रेचक - पूरक  सीधे कुम्भक के आयाम में होना अर्थात श्वास रहित स्थिति में शरीर को जीवित बनाये रखना ।

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 52 

प्राणायाम सिद्धि 

" तत : क्षीयते प्रकाश आवरणम् "

सूत्र भावार्थ 🔽

प्राणायामके चारो अंगों की सिद्धि पर प्रकाशके ऊपर पड़ा आवरण क्षीण हो जाता है अर्थात अविद्या निर्मूल हो जाती है ।


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 53

सूत्र : 52 का क्रमश : 

" धारणासु च योग्यता मनसः "

🐚प्राणायाम सिद्धि से मनमें धारणाकी योग्यता आती है ।

सूत्र : 52 और सूत्र : 53 को एक साथ देखने से प्राणायाम सिद्धि के परिणाम का पता चलता है । प्राणायाम सिद्धि से ज्ञानप्राप्ति के साथ मन में धारणा की योग्यता आती है ।

धारणा अष्टांगयोग का छठवां अंग है और इसके बाद ध्यान तथा समाधि अष्टांगयोग के दी अंग और  हैं ।


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 54 

 प्रत्याहार 

ज्ञान इंद्रियों का रुख अपनें - अपनें बिषयों से हट कर चित्त की ओर हो जाना , प्रत्याहार है । प्रत्याहार

 (प्रति + आहार )अर्थात आहारकी ओर पीठका होना अर्थात इंद्रियों का रुख अपनें अपनें  बिषयों की ओर से हट जाना और निर्मल शांत चित्त की ओर हो जाना ।


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 55

प्रत्याहार सिद्धि 

➡️प्रत्याहार सिद्धि से इन्द्रियाँ पूर्ण रूपेण नियंत्रित हो जाती हैं

~~◆◆ ॐ◆◆~~ 22 अक्टूबर


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