पतंजलि साधन पाद सूत्र : 51
अष्टांगयोगका चौथा अंग प्राणायाम
भाग - 3 >चौथे प्रकारका प्राणायाम
" बाह्य आभ्यंतर बिषय आक्षेपी चतुर्थः "
रेचक - पूरक को छोड़ आगे बढ़ जाने वाला प्राणायाम जिसे हठ प्रदीपिका में केवली प्राणायाम कहते हैं । बिना रेचक - पूरक किये सीधे सूक्ष्म कुम्भक स्थिति में योगी पहुंच जाता है और देर तक श्वास रुक जाती हैं ।
अर्थात बिना रेचक - पूरक सीधे कुम्भक के आयाम में होना अर्थात श्वास रहित स्थिति में शरीर को जीवित बनाये रखना ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 52
प्राणायाम सिद्धि
" तत : क्षीयते प्रकाश आवरणम् "
सूत्र भावार्थ 🔽
प्राणायामके चारो अंगों की सिद्धि पर प्रकाशके ऊपर पड़ा आवरण क्षीण हो जाता है अर्थात अविद्या निर्मूल हो जाती है ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 53
सूत्र : 52 का क्रमश :
" धारणासु च योग्यता मनसः "
🐚प्राणायाम सिद्धि से मनमें धारणाकी योग्यता आती है ।
सूत्र : 52 और सूत्र : 53 को एक साथ देखने से प्राणायाम सिद्धि के परिणाम का पता चलता है । प्राणायाम सिद्धि से ज्ञानप्राप्ति के साथ मन में धारणा की योग्यता आती है ।
धारणा अष्टांगयोग का छठवां अंग है और इसके बाद ध्यान तथा समाधि अष्टांगयोग के दी अंग और हैं ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 54
प्रत्याहार
ज्ञान इंद्रियों का रुख अपनें - अपनें बिषयों से हट कर चित्त की ओर हो जाना , प्रत्याहार है । प्रत्याहार
(प्रति + आहार )अर्थात आहारकी ओर पीठका होना अर्थात इंद्रियों का रुख अपनें अपनें बिषयों की ओर से हट जाना और निर्मल शांत चित्त की ओर हो जाना ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 55
प्रत्याहार सिद्धि
➡️प्रत्याहार सिद्धि से इन्द्रियाँ पूर्ण रूपेण नियंत्रित हो जाती हैं
~~◆◆ ॐ◆◆~~ 22 अक्टूबर
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