Monday, October 18, 2021

पतंजलि साधन पाद सूत्र 40 - 44 नियम के अंग

 



साधन पाद सूत्र : 40 - 45 तक में नियम के 05 अंगों को बताया जा रहा है ⬇️

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 40

नियम का पहला अंग भाग - 1 शौच 

सूत्र रचना इस प्रकार है ⬇

शौचात्  , स्व , अंग , जुगुत्सा , परै : , असंसर्ग 

जुगुत्सा का अर्थ है , घृणा

सूत्र भावार्थ ⬇

नित्य स्व अंगों की सफाई करते रहने से उनसे निकलने वाले मलके ऊपर लगातार मनन करते रहने के कारण स्व अंगों से घृणा होने लगती है । इस तरह दूसरों से दूर रहने का भाव स्वतः उठनें लगता है । ध्यान रहे , स्व अंगों के उठ रहे घृणा भाव कहीं आपको गुलाम न बना ले । यहां घृणा माध्यम है भोग तत्त्वों के प्रति वैराग्य भाव के अंकुरण के लिए ।

// ॐ //


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 41 

नियम का पहला अंग भाग - 2 आतंरिक शौच 

आतंरिक शौच सिद्धि से निम्न 05 योग्यताएँ मिलती हैं 

1- सात्त्विक बुद्धि की प्राप्ति होती है

2 - मन की निर्मल रहता है 

3 - शुद्ध एकाग्रता मिलती है 

4 - इंद्रियां नियंत्रित रहती हैं 

5 - आत्म - दर्शन की प्राप्ति होती है 

// ॐ //


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 42

नियम का दूसरा तत्त्व -  संतोष

# संतोषसे सुख मिलता है #

// ॐ //


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 43

नियम का तीसरा अंग -  तप

सूत्र रचना ⬇

➡ काया इंद्रिय सिद्धि अशुद्धि क्षय तप :

काया , मन और इंद्रियों की शुद्धि के लिए किये जाने वाले उपाय , तप कहलाते हैं ।

बेदव्यास जी तप के संबंध में निम्न विचार रखते हैं 👇

// ॐ //


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 44

नियम का चौथा अंग -  स्वाध्याय 

स्वाध्याय सिद्धिसे ईष्ट देवतासे मिलना होता है 

स्वाध्याय के दो अर्थ हैं ⬇

स्वयं को पढ़ते रहना और सत् ग्रंथोंका अध्ययन करते रहना ।

ईष्ट देवता एक निर्मल ऊर्जा का संचार बनाये रखते हैं जो साधना की उच्च भूमियों में पहुँचनें में सहयोग करती है । यहाँ इष्ट देवता का भाव है , पिछले जन्मों के गुरु से है जो साधना में  उच्च भूमियों में  ले जाने का यत्न करते रहे हैं ।

// ॐ // 19 अक्टूबर

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