साधन पाद सूत्र : 40 - 45 तक में नियम के 05 अंगों को बताया जा रहा है ⬇️
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 40
नियम का पहला अंग भाग - 1 शौच
सूत्र रचना इस प्रकार है ⬇
शौचात् , स्व , अंग , जुगुत्सा , परै : , असंसर्ग
जुगुत्सा का अर्थ है , घृणा
सूत्र भावार्थ ⬇
नित्य स्व अंगों की सफाई करते रहने से उनसे निकलने वाले मलके ऊपर लगातार मनन करते रहने के कारण स्व अंगों से घृणा होने लगती है । इस तरह दूसरों से दूर रहने का भाव स्वतः उठनें लगता है । ध्यान रहे , स्व अंगों के उठ रहे घृणा भाव कहीं आपको गुलाम न बना ले । यहां घृणा माध्यम है भोग तत्त्वों के प्रति वैराग्य भाव के अंकुरण के लिए ।
// ॐ //
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 41
नियम का पहला अंग भाग - 2 आतंरिक शौच
आतंरिक शौच सिद्धि से निम्न 05 योग्यताएँ मिलती हैं
1- सात्त्विक बुद्धि की प्राप्ति होती है
2 - मन की निर्मल रहता है
3 - शुद्ध एकाग्रता मिलती है
4 - इंद्रियां नियंत्रित रहती हैं
5 - आत्म - दर्शन की प्राप्ति होती है
// ॐ //
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 42
नियम का दूसरा तत्त्व - संतोष
# संतोषसे सुख मिलता है #
// ॐ //
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 43
नियम का तीसरा अंग - तप
सूत्र रचना ⬇
➡ काया इंद्रिय सिद्धि अशुद्धि क्षय तप :
काया , मन और इंद्रियों की शुद्धि के लिए किये जाने वाले उपाय , तप कहलाते हैं ।
बेदव्यास जी तप के संबंध में निम्न विचार रखते हैं 👇
// ॐ //
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 44
नियम का चौथा अंग - स्वाध्याय
स्वाध्याय सिद्धिसे ईष्ट देवतासे मिलना होता है
स्वाध्याय के दो अर्थ हैं ⬇
स्वयं को पढ़ते रहना और सत् ग्रंथोंका अध्ययन करते रहना ।
ईष्ट देवता एक निर्मल ऊर्जा का संचार बनाये रखते हैं जो साधना की उच्च भूमियों में पहुँचनें में सहयोग करती है । यहाँ इष्ट देवता का भाव है , पिछले जन्मों के गुरु से है जो साधना में उच्च भूमियों में ले जाने का यत्न करते रहे हैं ।
// ॐ // 19 अक्टूबर
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