Friday, March 4, 2011

गीता अध्याय - 03

भाग - 05

गीता अध्याय तीन का प्रारम्भ अर्जुन के इस प्रश्न से हो रहा है -----
यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है तो ----
आप मुझको कर्म में क्यों लगाना चाहते हैं ?
और .....
अध्याय पांच का प्रारम्भ अर्जुन के इस प्रश्न से होता है -------
कभी आप कर्म योग की बात करते हैं .....
और .....
कभी कर्म - संन्यास की ....
आप मुझे यह बाताएं की इन दोनों में कौन सा मेरे हित में है ?

कर्म
कर्म - योग
कर्म संन्यास
और
ज्ञान का आपस में गहरा सम्बन्ध है :------
कर्म अभ्यास का एक मार्ग है जहां ....
कर्म - बंधनों के प्रति होश बनाया जा सकता है , यह होश ----
आम कर्म को कर्म - योग में बदल देता है ,
और कर्म योग में गुण तत्त्वों की पकड़ों को ढीला करनें का अभ्यास
कर्म - फल , आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय
और ....
अहंकार का त्याग होता है
और ....
जो कर्म संन्यास के नाम से जाना जाता है ...
कर्म संन्यास का अर्थ कर्म - त्याग से नहीं है ,
कर्म संन्यास का अर्थ है कर्म तत्त्वों की पकड़ का त्याग हो जाना ।
कर्म त्याग में ज्ञान की प्राप्ति होती है , जिसको
कर्म के अनुभव से जोड़ कर देखा जाना चाहिए ॥

====== ॐ ======

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