Sunday, March 6, 2011

गीता अध्याय - 03

 

भाग – 06

इन्द्रिय - बिषय योग सूत्र

गीता के इस अध्याय में निम्न तीन सूत्र इन्द्रिय एवं बिषय साधना से संबंद्धित हैं -----

3.6 , 3.7 , 3.34

सूत्र – 3.6

सूत्र कहता है -----

जो लोग कर्म - इन्द्रियों को हठात बश में रखते हैं उनमें अहंकार पूर्ण सघन होता है

सूत्र – 3.7

यहाँ यह सूत्र कहता है ------

नियोजित इन्द्रियों के माध्यम से होनें वाला कर्म आसक्ति रहित होता है जिसको कर्म - योग कहते हैं

सूत्र – 3.34

सूत्र कहता है -----

सभी बिषयों में राग - द्वेष भरे हैं जो इन्द्रियों को सम्मोहित करते हैं

गीता के तीन सूत्र कर्म - योग की तीन बातों को बताते हुए कहते हैं ……….

पहले ………

अपनें ज्ञानेन्द्रियों की चाल आर नज़र रखो ------

फिर

उस इन्द्रिय के उस बिषय को समझो जो उसे अपनी ओर खीच रहा है

फिर

यह समझो की ------

यह इन्द्रिय - बिषय का योग जो होनें जा रहा है , वह …..

[क] क्या क्षणिक सुख देगा ?

[ख] क्या उस सुख का परिणाम दुःख होगा ?

[ग] क्या यह इन्द्रिय - बिषय मिलन भोग है जो इन्द्रिय तृप्ति तक   सीमित होगा या ……

[घ] यह मिलन प्रकृति की जरूरतों को पूरा करनें वाला है ?

बिषय - इन्द्रिय मिलन की परख ------

[क] भोग में पहुंचाती है -----

या

[ख] योग में पहुंचा कर …..

परम सत्य में स्वयं को स्वयं से परिचय कराती है

जो किसी भी को ……

परम आनंद से भर सकती है

===== ओम ======

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