भाग – 06
इन्द्रिय - बिषय योग सूत्र
गीता के इस अध्याय में निम्न तीन सूत्र इन्द्रिय एवं बिषय साधना से संबंद्धित हैं -----
3.6 , 3.7 , 3.34
सूत्र – 3.6
सूत्र कहता है -----
जो लोग कर्म - इन्द्रियों को हठात बश में रखते हैं उनमें अहंकार पूर्ण सघन होता है
सूत्र – 3.7
यहाँ यह सूत्र कहता है ------
नियोजित इन्द्रियों के माध्यम से होनें वाला कर्म आसक्ति रहित होता है जिसको कर्म - योग कहते हैं
सूत्र – 3.34
सूत्र कहता है -----
सभी बिषयों में राग - द्वेष भरे हैं जो इन्द्रियों को सम्मोहित करते हैं
गीता के तीन सूत्र कर्म - योग की तीन बातों को बताते हुए कहते हैं ……….
पहले ………
अपनें ज्ञानेन्द्रियों की चाल आर नज़र रखो ------
फिर
उस इन्द्रिय के उस बिषय को समझो जो उसे अपनी ओर खीच रहा है
फिर
यह समझो की ------
यह इन्द्रिय - बिषय का योग जो होनें जा रहा है , वह …..
[क] क्या क्षणिक सुख देगा ?
[ख] क्या उस सुख का परिणाम दुःख होगा ?
[ग] क्या यह इन्द्रिय - बिषय मिलन भोग है जो इन्द्रिय तृप्ति तक सीमित होगा या ……
[घ] यह मिलन प्रकृति की जरूरतों को पूरा करनें वाला है ?
बिषय - इन्द्रिय मिलन की परख ------
[क] भोग में पहुंचाती है -----
या
[ख] योग में पहुंचा कर …..
परम सत्य में स्वयं को स्वयं से परिचय कराती है
जो किसी भी को ……
परम आनंद से भर सकती है
===== ओम ======
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