अध्याय तीन में हमनें तीन सूत्रों को देखा - सूत्र 3.6 , 3.7 , 3.34 //
ये सूत्र कर्म- योग के अहम सूत्र हैं ; इनके माध्यम से प्रभु कहते हैं ----
इन्द्रियों को हठात नियोजित नहीं करना चाहिए ….
इन्द्रियों से मैत्री बना कर उनको बश में रखना चाहिए ----
सभी बिषयों में राग - द्वेष होते हैं जो -----
इन्द्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं //
अब इन तीन सूत्रों के साथ इनको भी देखते हैं -----
सूत्र – 2.64 – 2.65
नियोजित इन्द्रियों वाला प्रभु प्रसाद रूप में स्थिर प्रज्ञता पाता है और ----
परम आनंद में रहता है //
सूत्र 4.10 , 2.56
यहाँ प्रभु कहते हैं ----
राग भय क्रोध रहित ब्यक्ति ज्ञानी - मुनि होता है //
आज इतना ही
==== ओम ======
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