Sunday, March 20, 2011

गीता अध्याय - 03




गीता के तीन और श्लोक -----

श्लोक .......
3.19 + 3.20 + 5.10
यहाँ श्लोक कह रहे हैं -------

आसक्ति रहित कर्म , कर्म सिद्धि के माध्यम हैं ॥
राजा जनक आसक्ति रहित कर्म करते हुए विदेह कह लाये ॥
ऐसा कर्म प्रभु - मार्ग होता है ॥

क्या कर्म जो हम करते हैं वह बिना आसक्ति हो , ऐसा संभव भी है ?
कौन और क्यों ऐसा कर्म करेगा जिसके करनें के पीछे कोई सोच न हो ?
गीता जिस कर्म की बात करता है वह कर्म - योग है
और ......
ऐसा कर्म मात्र वह कर सकता है जो गुणों के गुरुत्व से परे बसेरा बनाया हुआ हो ॥


जे कृष्णामूर्ति और चन्द्रमोहन रजनीश यही कहते रहे की ........

moment to moment जीवो ----
जीवन का हर पल होश मय होना चाहिए ------
भूत और भविष्य की सोच तो एक भ्रम है .........
वर्तमान में जीवन है .........
आदि - आदि ॥
ये जो बातें कही जा रही हैं उनका सम्बन्ध साधना से दूर - दूर तक नहीं है ,
ये बातें तो .....
साधाना के फल हैं ॥
जैसे गीता कहता है की ......
आसक्ति रहित कर्म करना चाहिए अर्थात जो कर्म हो रहा है उसमें यह होश बनाओ की -----
यह काम तुम क्यों कर रहे हो ?
इसका जो परिणाम होगा उसे तुझे ही भोगना है ,
करतेकरते यदि इस प्रकार कुछ अहम् बातों को गहराई से सोचा जाए तो ......
वह कर्म करता , वहीं पहुंचता है .......
जहां की बात ......
जे कृष्णामूर्ति और रजनीश कहते हैं ॥

===== ॐ ======


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