यहाँ गीता अध्याय – 03 के सूत्र – 3.17 – 3.18 के सन्दर्भ में आगे देखनें जा रहे हैं ----
कर्म के प्रकार :
यहाँ हमें देखना है गीत सूत्र - 18.23 से 18.25 तक के तीन सूत्रों को
सूत्र कह रहे हैं ======
आसक्ति … ...
क्रोध … ......
लोभ … .....
मोह … .....
---एवं-----
अहंकार के प्रभाव में जो कर्म होते हैं वे राजस एवं तामस कर्म होते हैं
- -- और -----जो कर्म चाह रहित , अहंकार रहित एवं किसी बंधन के बिना होते हैं वे … ....
सात्त्विक कर्म होते हैं
यहाँ इतनी सी बात ध्यान में रखनी है की-----
हम इन सूत्रों को अर्जुन के प्रश्न [ यदि ज्ञान कर्म से उत्तम है तो आप मुझ को कर्म में क्यों उतारना चाहते हैं ] के सन्दर्भ में देख रहे हैं
और ----- कर्म क्या है ? इस बात को अध्याय – 08 में पहुंचनें के पहले देख रहे है
अध्याय – 08 सूत्र
तीन में प्रभु कर्म की परिभाषा देते हैं
कर्म की परिभाषा है-----
भूत भाव : उद्भव कर : विसर्ग : इति कर्म :
===== ॐ =======
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