Tuesday, March 22, 2011

गुण एवं कर्म विभाग



गीता - सूत्र 3.28


गुण विभाग – कर्म विभाग का बोध ही तत्त्व – वित्तु होना है


क्या है गुण विभाग

और

क्या है कर्म विभाग ?


गुण विभाग – कर्म विभाग की चर्चा वेदों में विस्तार से है

वेद कहते हैं ------

प्रभु से प्रभु में तीन गुणों का एक माध्यम है जो साश्वत है , समयातीत है , सीमा रहित है

यह माध्यम ही माया कहा जाता है माया टाइम – स्पेस की रचना करती है और टाइम – स्पेस

में जीव – निर्जीव एवं जड़ – चेतन सभी हैं

माया तो जन्म – मृत्यु से परे है लेकिन जो माया से है वह जन्म – मृत्यु में सीमित होता है

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई सूचना नहीं और ऎसी कोई जगह नहीं जहां तीन गुणों का प्रभाव

न हो


माया से माया में दो प्रकृतियाँ हैं ; जड़ एवं चेतन या अपरा एवं परा

जड़ प्रकृति में आठ तत्त्व होते हैं ; पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि एवं अहंकार और परा प्रकृति

चेतना है

जड़ एवं चेतना प्रकृतियों से सभी सूचनाएं हैं जिनमें मनुष्य भी आत है

प्रकृति से इन्द्रियों एवं मन द्वारा जो कुछ भी ग्रहण किया जाता है उस से हमें तीन गुणों की

कुछ – कुछ मात्राएँ मिलती हैं यह मात्राएँ हमारा स्वभाव का निर्माण करती हैं एयर स्वभाव से

कर्म होता है

गुण कर्म करता है और मनुष्य तो मात्रा यंत्रवत एक माध्यम है जो लोग स्वयं को करता समझते हैं

उन पर अहंकार का गहरा प्रभाव होता है


कर्म और गुण का जो सम्बन्ध ऊपर अभी स्पष्ट किया गया उसे ही ------

गुण विभाग एवं कर्म विभाग की संज्ञा दी गयी है , हमारे वेदों में

गीता में यहाँ यह बात वेदों एवं सांख्य – योग से ली गयी है


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