Sunday, November 8, 2009

बुद्धि केंद्रित ब्यक्ति एवं गीता --1

गीता साँख्य-योग का मार्ग है इसको भक्ति शब्द से जोड़ना इसके साथ बेइन्शाफी है । ---क्योंकि .........
# भक्त वह है जिसका मन शांत हो और बुद्धि निर्मल एवं स्थिर हो ।
# भक्त वह है जिसकी बुद्धि में संदेह के लिए कोई स्थान न हो और जो प्रश्न रहित हो ।
गीता अर्जुन के प्रश्नों एवं श्री कृष्ण के उत्तरों का सग्रह है अतः इसको भक्ति से साथ जोड़ना उचित नहीं दीखता।
कर्मयोग , ज्ञानयोग तथा ध्यान के फल के रूप में श्रद्घा मिलती है और भक्ति श्रद्घा से प्रारम्भ होती है । गीता जो
बिषय , इन्द्रियाँ , मन , बुद्धि एवं भोग तत्वों की साधना का पूरा रहस्य देता है उसको भक्ति के साथ जोडनें का
प्रयाश सच्चाई को छिपाने जैसा है । योग, ध्यान आदि के अपनें - अपनें मार्ग एवं शास्त्र हैं जबकि भक्ति एक
चक्रवात है जिसका कोई मार्ग नहीं और कोई शास्त्र नहीं । भक्ति में भक्त अपनें के लिए नहीं होता उसके अन्दर
हर वक्त परम की लहर बहती रहती है लेकिन योगी इस स्थिति में तब आता है जब योग - सिद्धि प्राप्त
होती है ।
गीता बिषय,इन्द्रियाँ,मन-बुद्धि , अंहकार , गुणों की जटिलता एवं भोग- तत्वों की पूरी गणित देता है और
कहता है अब तूं यह समझ की करता तूं नहीं है गुन है , तेरे में करता- भाव तेरे अंहकार के कारण है जबकि
द्रष्टा-भाव जगनें पर भक्ति प्रारंभ होती है ।
गीता मूलतः मोह की दवा है और भक्ति में मोह दूर - दूर तक दिखती भी नहीं। गीता भावों से भावातीत की
यात्रा है और भक्ति भावातीत का साकार रूप है। जो लोग पौराणिक कथाओं में गीता श्लोकों को मिला कर
मिश्रण तैयार कर नें में लगे हैं वे स्वयं तो डूबे ही हैं औरों को भी डूबा रहे हैं ।
गीता बुद्धि-योग का सागर है इसे सागर ही रहनें देना उत्तम होगा इसको सीमा में कैद करना उचित नहीं ।
आज विज्ञान का युग है आज मीरा, नानक , कबीर को खोजना एक असंभव काम है , आज तो लोग
दो रुपये का बैगन भी लेते हैं तो वह भी भ्रम के साथ , क्या पता ठीक हो या न हो , ऐसे में कोई अपनें जीवन
को किसी पर कैसे अर्पण कर सकता है ?----सोचियेगा इस बात पर ।
आज भक्त तो रहे नहीं और जब फसल नहीं होती तो उस खेत में घास भर जाती है ठीक यही स्थति है आज
लोगों की भक्ति के नाम पर उमड़ती भीड़ की ।
आज भक्ति का ब्यापार जोरों पर है , जबकि भक्त हैं नहीं , जब थे तब उनको किसी नें पूछा तक नहीं।
मीरा क्यों वृन्दाबन से द्वारका भागी?, परमहंस रामकृष्ण को लोगों नें क्यों पागल कहते थे , कबीर भूखे
पेट क्यों सोते थे क्या उस समय हमलोग नहीं थे जो भक्ति के नाम पर क्या-क्या नही कर रहे ।
अब वक्त आगया है , छोडिये नकली जिन्दगी को और अपनाइए गीता को जो आप को उस सत्य से
मिला देगा जिसके लिए मनुष्य का रूप मिला हुआ है ।
=====ॐ==========

1 comment:

  1. If you find a BHAKTA like MEERA .KABIR .RAMKRISHAN PARAMHANSA
    Are you a able to recogise them ?. Do you have a inner sight to see their light.
    Going through most of your articles i want to know about your inner journey .

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