Monday, November 9, 2009

बुद्धि केंद्रित ब्यक्ति एवं गीता - 2

यहाँ आप को सोचनें के लिए पाँच बातें दी जा रही हैं , आप इन बातों पर सोचिये और गीता- बुद्धि योग में
प्रवेश कीजिए ।
[ क - १ ] काम, क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अंहकार रहित ब्यक्ति कैसा होता होगा?
[ क-२ ] सुख- दुःख , लाभ- हानि में सम भाव वाला कैसा होता होगा ?
[क-३ ] ऐसा ब्यक्ति जिसके अन्दर मैं- तूं का भाव न हो , वह कैसा होता होगा ?
[क-४ ] जिसको मित्र- शत्रु शब्द प्रभावित न करते हों वह कैसा ब्यक्ति होता होगा ?
ऊपर की चार बातों के लिए आप देखिये गीता के इन श्लोकों को -----------
2.47 - 2.51 , 3.19 - 3.20 , 4.38 , 5.10 - 5.11 , 18.49 - 18.50 , 18.55 - 18.56
गीता का राजस- तामस गुणों से अप्रभावित सम-भाव योगी ठीक वैसा होता है जैसी बातें ऊपर एवं इन
श्लोकों में बताई गई हैं ।
[ख ] गीता कहता है [गीता- 7।7 ] --- संसार की स्थिति एक माले जैसी है जिसका सूत्र परमात्मा है ।
विज्ञान कोस्मिक होर्मनी की बात बताता है अर्थात पूरा ब्रह्माण्ड एक झील सा है जिसमें यदि किसी भी
जगह एक कंकड़ डाला जाए तो जो लहर फैलती हैं उस से झील का कण-कण प्रभावित होता है फ़िर ऎसी
स्थिति में संसार से अप्रभावित कैसे रहा जा सकता है ?
[ग ] हम जो कुछ भी करते हैं और जो कुछ भी समझते हैं उनका माध्यम मन- बुद्धि हैं पर गीता कहता है
[ गीता - 12.3-12.4 ] ब्रह्म की अनुभूति मन-बुद्धि से परे की है फ़िर ऐसे में हम ब्रह्म पर केंद्रित कैसे
हो सकते हैं ?
[घ ] जो आसक्ति रहित कर्म करता है उसकी इस भोग संसार में कमलवत स्थिति होती है [गीता-5.10 ] क्या
तालाब में रहनें वाला पानी से बच सकता है ?
[ च ] बुद्ध निर्वाण प्राप्ति के बाद जब अपनें घर पहली बार आए तो उनकी पत्नी - यशोधरा कहती हैं ----
घर छोडनें से जो आप को मिला क्या वह यहाँ रह कर प्राप्त नहीं किया जा सकता था ? गुरुवार रविन्द्र नाथ
की कहानी में बुद्ध चुप रहते हैं --अब आह सोचिये की क्या घर में निर्वाण - प्राप्ति सम्भव है ?
पाँच बातें यदि आप में अपनी जगह बना पाती हैं तो मैं अपनें को धन्य भागी समझूंगा ।
गीता को पढिये , मनन कीजिये और उसके सूत्रों की लय में परम श्री कृष्ण की लय को पकडिये ।
=====ॐ========

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