Friday, November 20, 2009

गीता-ज्ञान ...3

गीता-श्लोक 6.27
राजस गुण के साथ प्रभु से जुड़ना असंभव है ---यह है इस सूत्र का भाव।
सूत्र को पढ़ना आसान है , कहना आसान है लेकिन गागर में सागर भरा हुआ यह सूत्र समझना अति कठिन है ।
पहले राजस गुण को जानना पडेगा और फ़िर इसके तत्वों को समझना पडेगा तब जा कर कुछ-कुछ आभाष
होगा की सूत्र क्या बताना चाहता है , तो चलिए इस सन्दर्भ में कुछ और इन सूत्रों को देखते हैं .........
14.7, 14.10, 14.12, 3.37--3.43, 5.23, 5.26, 16.21, 7.11, 10.28
यहाँ छः अध्यायों के पन्द्रह सूत्रों का सारांश कुछ इस प्रकार है ..........
काम, कामना , क्रोध, लोभ, एवं अज्ञान- राजस गुण के तत्त्व हैं । क्रोध काम का रूपांतरण है।
काम,क्रोध एवं लोभ नरक के द्वार हैं । राजस गुणों के तत्वों से अप्रभावित ब्यक्ति परम-ऊर्जा से भरा होता है ।
परम श्री कृष्ण कहते हैं ---शाश्त्रानुकुल काम एवं काम - ऊर्जा को पैदा करनें वाला कामदेव , मैं हूँ ।
गीता सूत्र 7.20 कहता है ...कामना अज्ञान- की जननी है ।
अब ऊपर बताई गई बातों पर हमें सोचना है --सोचिये आप क्या इस से पूर्ण गणित कोई और हो सकती है?
गीता हम सब के साथ हजारों सालों से है , हम लोग इसकी पूजा भी कर रहे हैं लेकिन इस के ज्ञान को यातो
हम पकड़ना नहीं चाहते या डरते हैं की यह कही हमसे भोग को छीन न ले --कुछ तो बात है ही ।
भोग से भगवान् , राग से वैराग्य तथा विचारों से निर्विचार की यात्रा का नाम गीता है ।
अभी भी वक्त है आप चाहें तो आज से गीता को अपना सकते हैं ।
====om=====

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