Friday, November 27, 2009

गीता ज्ञान - 8

यहाँ गीता के निम्न श्लोकों को देखना है ---------
2.45, 2.60-2.64, 3.5-3.7, 3.27, 3.33-3.34, 3.37-3.40, 14.10, 16.21
न्यूटन का विज्ञानं कहता है ........
जब दो बस्तुएं एक दूसरे से दूर होती हैं तब उनके मध्य का खिचाव कम होनें लगता है और -------
कण विज्ञानं में क्वार्क्स के सम्बन्ध में कहा जाता है की जब दो क्वार्क्स को एक दूसरे से दूर करते हैं तब
उनके मध्य का खिचाव बढ़ जाता है ।
गीता के गुन विज्ञानं में जब गोता लगाया जाता है तब जो मिलता है वह इस प्रकार होता है -------
मन के अन्दर उठते न्यूरांस एवं बिषयों के मध्य की दूरी तथा उनके मध्य के खिचाव में सीधा अनुपात होता है
अर्थात जैसे - जैसे दूरी बढती है वैसे- वैसे उनके बीच का खिचाव भी बढता जाता है ।
गीता सूत्र 3.34 कहता है -------
बिषयों में छिपे राग- द्वेष इन्द्रियों को अपनी ओर खीचते हैं और गीता सूत्र 2.62-2.63 कहते हैं .........
बिषय-इन्द्रिय का मिलन मन में मनन पैदा करता है, मनन से आसक्ति आती है , आसक्ति से कामना
का जन्म होता है तथा कामना टूटनें पर क्रोध पैदा होता है ।
अब गीता सूत्र 3.37-3.40 तक पर नजर डालते हैं ............
गीता यहाँ कहता है --------
काम -कामना राजस गुन के तत्त्व हैं । क्रोध काम का रूपांतरण है जिसका सम्मोहन बुद्धि तक रहता है , क्रोध में बुद्धि में स्थित ज्ञान के ऊपर अज्ञान की चादर आजाती है , मन-बुद्धि अस्थिर हो जाते हैं और वह ब्यक्ति इस स्थिति में जो भी करता है वह पाप होता है ।
गीता सूत्र 3.6-3.7 को देखनें से पता चलता है की --------
कुछ लोग हठात इन्द्रियों को नियोजित करते हैं लेकिन ऐसा करनें से अहंकार सघन होता है और अहंकार
साधना में सब से बड़ा रुकावट है । इन्द्रियों से मैत्री बना कर मन स्तर पर नियोजित
करना चाहिए ।
गीता यह नहीं कहता की साधना को बंधन समझना चाहिए , साधना एक यात्रा है जिस पर मिलनें वाला हर
अनुभव अपना अलग रस टपकाता है और उस रस का आनंद उठाना चाहिए ।
======ॐ==========

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