Tuesday, November 24, 2009

गीता-ज्ञान....5

गीता-श्लोक .....2.14
श्लोक कह रहा है ------बिषय एवं इन्द्रियों के योग से जो सुख-दुःख मिलता है वह सर्दी - गर्मी की तरह
अल्प कालीन होता है ।
श्लोक को समझनें के लिए हमें गीता के निम्न श्लोकों को देखना चाहिए ---------
5.22, 18.38, 3.34, अब इन श्लोकों को समझते हैं -------
श्लोक 5.22
इंदियों एवं बिषयों के मेल से जो प्राप्त होता है उसका नाम भोग है , भोग सुख में दुःख का बीज होता है और ऐसा
सुख क्षणिक होता है ।
श्लोक 18.38
इंडिय - बिषय के मिलनें वाला सुख राजस-सुख होता है । ऐसा सुख भोग के समय अमृत सा भासता है
लेकिन इस सुख में दुःख का बीज होता है।
श्लोक 3.34
बिषयों के अन्दर राग-द्वेष होते हैं जो इन्द्रियों को आकर्षित करते रहते हैं।
गीता के ऊपर बताये गए चार श्लोक कर्म-योग की नीव हैं , जो इन श्लोकों को नहीं पकड़ा , वह कर्म-योग को नहीं अपना सकता ।
गीता गुणों का विज्ञानं है , यह कहता है ---राजस-तामस गुन धारी भोगी होते हैं और गुणों से अप्रभावित
ब्यक्ति योगी होता है [ 7.3, 7.19, 14.19, 14.20, 14.23 और 9.12, 9.13, 16.8 को देखिये ]।
गीता-साधक को गुणों का रस प्रभावित नहीं करता , यह साधक गुणों के रस को भ्रम समझता है और भोगी के लिए ये परम लगते हैं ।
हमारी इन्द्रियाँ, संसार- जो भोग तत्वों से परिपूर्ण है , उसमें स्थित भोग तत्वों से आकर्षित होती हैं ।
आकर्षित इन्द्रियां मन-बुद्धि को भी प्रभवित करती हैं और इस प्रकार बिषय से बुद्धि तक भोग - तत्वों के
प्रभाव का एक माध्यम सा बन जाता है जिसको गुन धारी नहीं समझ सकता ।
संसार के भोग तत्वों की समझ, भोगी से योगी बना देता है और यह काम कर्म-योग का पहला चरण है ।
बिषय से वैराग तक की साधना बिषय, इन्द्रियाँ एवं मन तक तो मनुष्य के हाथ में है जो अभ्यास से
सम्भव है और आगे की यात्रा स्वतः होती है ।
बिषय से मन तक की गहरी साधना बैरागी बनाती है जो परमात्मा के द्वार को खोलती है ।
====ॐ=========

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