Wednesday, November 4, 2009

एक और संसार है - 3

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥ गीता--8.6
मनुष्य जीवन भर जिस भाव में जीता है अंत समय में भी उसी भाव से भावित हो कर प्राण त्यगता है
और उसका यह भाव उसे यथा उचित वैसी योनी दिलाता है ।
हिंदू परिवार में जब कोई आखिरी श्वास ले रहा होता है तब उसको गंगा-जल पिलाया जाता है और गीता सुनाया जाता है । जो आदमी जीवन में राग-मदिरा को परम समझ कर अपना जीवन गुजारा हो वह अंत समय में गंगा-जल पी कर रूपांतरित हो सकता है या गीता के श्लोक क्या उसके अन्दर जा सकते हैं ?
हर आदमी हर पल एक चौराहे पर खडा है जहाँ से दो मार्ग निकलते हैं , एक मार्ग पर राजस-तामस गुणों का
आकर्षण होता है और दूसरा मार्ग शून्यता से परिपूर्ण होता है , एक मार्ग संसार में ब्याप्त राग में घुमाता
रहता है तथा दूसरा मार्ग बैराग्य का होता है । राग का मार्ग कहता है --तूं मुझे समझ ले और यदि तूं ऐसा
करनें में सफल हो गया तो मैं तूझे उस मार्ग से मिला दूंगा जो सभी मार्गो का मार्ग है ।
द्वत्य- जीवन में शान्ति की कल्पना करना एक स्वप्न है। दुखों से लोग भागते है लेकिन कोई भाग कर जाएगाभी कहाँ , हम जहाँ भी जाते हैं अपना संसार निर्मीत कर लेते हैं । नर्क का जीवन जीनें वाला यदि भूल से स्वर्ग में पहुँच जाए तो मिनटों में वह वहाँ भी नर्क निर्मित कर लेगा , कर लेगा इकट्ठा अपनें
ईस्ट-मित्रों को , जमा लेगा अपनी मंडली । दुःख से . लोग भागते हैं लेकिन दुःख वह देन है जो आंखों पर
पड़े परदे को उठाता है और कहता है देख ले की मेरे उस पार क्या है ? जो सुख-दुःख में रुक कर अपनें को
समझ लिया वह हो गया गीता का समत्व - योगी जो राग,क्रोध एवं भय रहित परम आनंदित रहता है [गीता-4।10]।
राग में सिमटा राम को कैसे पकड़ पायेगा, मोह का चस्मा पहन कर मोहन को कोई कैसे देख सकता है ?
मोह में डूबा अर्जुन अपनें संग मोहन को नहीं पहचान पा रहा और दूर स्थीत संजय मोहन में परम ब्रह्म
को देख कर कहता है ---जहाँ परम श्री कृष्ण एवं अर्जुन हैं , जीत भी वहीं है --आप ज़रा सोचना , अभी
युद्ध प्रारंभ भी नहीं हुआ है और संजय परिणाम बता रहे हैं वह भी धृतराष्ट्र को , क्या गुजरी होगी बिचारे
ध्रितराष्ट्र पर ... ।
योग का मार्ग एवं भोग का मार्ग दोनों मार्ग सामनें हैं , देखना आप को है की आगे किस मार्ग को पकड़ना है ।
====ॐ======

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