मोह के साथ बैराग्य नहीं मिलता -----गीता 2.52
गीता बुद्धि - योग की गणित है अतः सोचिये और चिंता रहित सोच में डूबिये क्योंकि .........
[क] भोग की चिंता का कारण अहंकर होता है , और ----
[ख] परम की चिंता सत की छाया होती है ।
अब आप इस बात पर सोच सकते हैं .......
अर्जुन कुरुक्षेत्र में क्या करनें गए हैं ?-----
१- बैरागी बननें के लिए या ------
२- राज्य की सत्ता प्राप्त करनें के लिए।
यदि कारण नम्बर -२ के लिए अर्जुन वहाँ हैं फ़िर परम श्री कृष्ण उनको युद्ध प्रारम्भ होनें से पूर्व
बैरागी क्यों बनाना चाहते हैं ?
बैराग्य क्या है ?
भोग - कर्मों में भोग-तत्वों की पकड़ से बच जाना ज्ञान प्राप्ति की ओर ले जाता है , ज्ञान से प्रकृति-पुरूष का बोध होता है , फलस्वरूप भोग- तत्वों की पकड़ समाप्त होती है जिसको कर्म-संन्यास कहते हैं ।
भोग- कर्मों में गुणों की छाया का न होना उन कर्मों को कर्म-योग बना देता है जिसके माध्यम से ज्ञान
मिलता है और ज्ञान बैराग्य में पहुँचानें का माध्यम है ।
अर्जुन का गीता में दूसरा प्रश्न [गीता श्लोक -3.1] के माध्यम से कर्म एवं ज्ञान से सम्बंधित है और पांचवा
प्रश्न गीता श्लोक 5.1 के माध्यम से कर्म-योग एवं कर्म-संन्यास से सम्बंधित है कर्म, कर्म-योग, कर्म-संन्यास , ज्ञान और बैराग्य का एक अटूट समीकरण है जिसको समझनें के लिए गीता के कम से कम निम्न श्लोकों को देखना चाहिए --------
2.52, 13.2, 4.38, 4.10, 13.7-13.11, 6.27, 5.1-5.4
कोई भी ब्यक्ति कर्म से बच नहीं सकता , कर्म तो करना ही है लेकिन कर्म करते समय भोग-तत्वों के प्रति होश बनाना कर्म-योग में पहुंचाता है , कर्म-योग की सफलता कर्म-संन्यास है , कर्म-संन्यास में ज्ञान की
प्राप्ति होती है जो भोग की ओर पीठ कर देती है और मुह बैराग्य की ओर हो जाता है और बैरागी
हर पल आत्मा पर केंद्रित रहता हुआ परमात्मा मय रहता है ।
गीता कहता है ------
तुम मेरे साथ रहो , मैं तेरे को कर्म से बैराग में पहुँचानें का काम करूँगा तेरे को बस मेरे मुताबिक बदलते रहना है और यह काम ऐसा है जिसको कोई नहीं चाहता।
जब तक पढनें से होना न हो वह पढ़ना अहंकार पैदा करता रहेगा और अहंकार अग्नि है।
गीता से जो मिलता है वह अवर्नातीत है लेकिन गीता से जो खोता है उसे कोई खोना नहीं चाहता --बस यही
कठिनाई हमें भटका रही है ।
===ॐ======
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