Wednesday, November 17, 2010

कर्म और गीता - 03

गीता हम कुछ ऐसे सूत्रों को देख रहे हैं
जिनका सीधा सम्बन्ध कर्म से है ।

आज यहाँ ऐसे ही कुछ और सूत्रों को देखते हैं जो इस प्रकार हैं -----
गीता सूत्र -----
3.8
3.27
3.28
3.33
18.59
18.60

गीता के इन छः सूत्रों में प्रभु अर्जुन को बताते हैं ..........
कर्म के बिना तो कोई रह नहीं सकता ॥
कर्म तो करना ही है ॥

यदि कर्म में आसक्ति , कामना , क्रोध ,
लोभ , मोह और अहंकार के प्रभाव को धीरे - धीरे
कम करनें का अभ्यास किया जाए तो
एक दिन ऎसी स्थिति आ सकती है जब ----

कर्म में अकर्म ....
अकर्म में कर्म का बोध होनें लगे , और ऐसा बोध ही ......
कर्म -योग है ॥
कर्म करता मनुष्य नही होता , मनुष्य के
अंदर जो हर पल बदलता गुण समीकरण
होता है ,
वह कर्म - करता है लेकीन अहंकार
की ऊर्जा के प्रभाव में मनुष्य स्वयं को कर्म करता मान लेता है
जो एक
बुनियादी भ्रम है ॥
तीन गुण मिलकर .....
स्वभाव बनाते हैं ....
स्वभाव का मनुष्य गुलाम होता है .... और
स्वभावतः
कर्म होता है ॥

मनुष्य तो मात्र जो उससे हो रहा है .....
उसका द्रष्टा भर है ॥
द्रष्टा भाव ही होश है जिसको अंगरेजी में अवेयरनेस कहते हैं ॥

==== ओम ======

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