मन - बुद्धि स्तर पर .......
साकार - निराकार कल्पना के स्तर पर .....
गीता में ब्रह्म क्या हो सकता है ? इस प्रश्न पर
हम गीता सागर में तैर रहे हैं ,
तो आइये ! देखते हैं , आगे क्या है ?
गीता सूत्र - 7.7
प्रभु कहते हैं -----
ससार की स्थिति एक माले जैसी है जिसका न दिखनें वाला सूत्र [ धागा ] , मैं हूँ ॥
गीता सूत्र - 13.14
वह सर्वत्र है , उसकी इन्द्रियाँ सभी जगह हैं और वह सब में है ॥
गीता सूत्र - 13.15
वह सबके अन्दर- बाहर , दूर - नजदीक समान रूप से है ॥
गीता सूत्र - 13.15
स्वयं इन्द्रिय - गुण रहित लेकीन सब का श्रोत , वह स्वयं है ॥
गीता सूत्र - 10.22
इन्द्रियाणां मनश्चाष्मी ॥
गीता सूत्र - 7.12
सभी गुण एवं उनके भाव मुझसे हैं लेकीन मैं भावातीत - गुनातीत हूँ ॥
गीता सूत्र - 7.14
तीन गुणों की माया जिस से यह संसार की रचना है , उसे समझना संभव नहीं ॥
गीता सूत्र - 7.13
गुनाधींन गुनातीत को नहीं समझ सकता ॥
गीता के कुछ ऐसे सूत्रों को मैं गीता से चुन कर लाया हूँ जो आप के
मन - बुद्धि की दिशा को बदलनें वाले हैं ।
मैं अपनें तरफ से कुछ कह नहीं रहा , हमें गीता से जो कुछ मिलता है ,
उसे मैं आप को देना अपना
धर्म समझता हूँ ,
आगे उसका प्रयोग आप कैसे करते हैं , यह आप पर निर्भर है ॥
===== ॐ =======
Monday, November 1, 2010
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