Wednesday, November 10, 2010
ब्रह्म मय मार्ग
ब्रह्म के सम्बन्ध में हम गीता के सूत्रों को देख रहे हैं और इस श्रृंखला में
यहाँ कुछ और सूत्रों को देखते हैं ॥
गीता श्लोक - 13.13
अनादि मत परमं ब्रह्म न सत न असत ॥
अनादि ब्रह्म न सत है न असत है ॥
गीता - श्लोक - 13.31
यदा भूत पृथक - भावं एक स्थंम अनुपश्यति ।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म संपद्यते तथा ॥
सभी जीवों को एक के फैलाव रूप एन जो देखता है , वह ब्रह्म मय होता है ॥
गीता श्लोक - 8.3
अक्षरं ब्रह्म परमं
अविनाशी ब्रह्म परम है ॥
==== ॐ ====
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