Friday, November 5, 2010

ब्रह्म - योगी

यहाँ हम गीता के चार श्लोकों को देखनें जा रहे हैं :

श्लोक - 18.51
प्रभु अर्जुन को बता रहे हैं -------
बिषयों के सम्मोहन से मुक्त , राग - द्वेष बिमुक्त
और स्थिर मन - बुद्धि वाला , ब्रह्म मय होता है ॥

श्लोक - 18.52
यहाँ प्रभु कहते हैं .......
अल्प अहारी , देह , मन , बचन पर नियंत्रण रखनें वाला ,
एकांत बासी , बैराग्य में पहुंचा
समाधि की अनुभूति वाला , ब्रह्म से परिपूर्ण होता है ॥

श्लोक - 18.53
प्रभु कहते हैं ......
अहंकार रहित , झूठे शक्ति शाली होने का प्रदर्शन न करनें वाला ,
काम - क्रोध से अप्रभावित ,
स्वामित्व - भाव से परे वाला योगी - ब्रह्म में होता है ॥

श्लोक - 18.54
यह श्लोक कहता है ......
जिनमें ऊपर बताई गयी बातें होती हैं ,
वह परा ,भक्त प्रभु को तत्त्व से समझता है ॥

गीता के इन सूत्रों को पकड़ कर आप ब्रह्म की ओ र एक कदम और चल सकते हैं ॥

आज दीपावली के दिन आप की यह ब्रह्म की यात्रा .......
खुशियों से भरी रहे ॥

==== ॐ ====

1 comment:

  1. ज्योति पर्व के अवसर पर आप सभी को लोकसंघर्ष परिवार की तरफ हार्दिक शुभकामनाएं।

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