Thursday, November 18, 2010
गीता के मोती
आप को गीता के चार मोतियों को आज मैं देनें का प्रयत्न कर रहा हूँ ,
आप देखना - यदि आप के काम लायक हो
तो रख लेना अन्यथा , मुझे वापस कर देना , वह भी बिना धन्यबाद के ॥
[क] श्लोक -5.10
आसक्ति रहित कर्म करनें वाला ठीक उस तरह से भोग तत्वों से
प्रभावित नहीं होता जैसे कमल के फूल की
पंखुड़ियां पानी से प्रभावित नहीं होती ॥
[ख] श्लोक - 5.11
कर्म - योगी अपनें तन , मन और बुद्धि से जो कुछ भी करता है ,
वह उसको और पवित्र बना देता है ॥
[ग] श्लोक - 3.7
कर्म - योगी वह है जो अपने इन्द्रियों का नियोजन मन से करता हो
और कर्म अनासक्त - भाव मवन करता हो ॥
[घ] श्लोक - 4.22
कर्म - योगी जो करता है , वह उसका गुलाम नहीं होता ॥
चार श्लोक और आप , अब आप इनको जैसे प्रयोग करना चाहें कर सकते हैं ॥
===== ॐ ======
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