Saturday, November 13, 2010

कर्म के सम्बन्ध में गीता की क्या राय है ?



गीता में प्रभु श्री कृष्ण कर्म के सम्बन्ध में जो कुछ कह रहे हैं
उनमें से कुछ श्लोकों को हम यहाँ ले रहे हैं ॥
[क] श्लोक - 18.23
प्रभु कह रहे हैं :
गुणों के आधार पर कर्म तीन प्रकार के हैं ,
जबकी गीता सूत्र - 8.3 में प्रभु कहते हैं .....
भूत - भाव - उद्भव करः बिसर्ग: कर्म संज्ञित: अर्थात .....
प्रकृति में बनें रहनें के लिए जो किया जाए , वह है - कर्म ॥
[क-१]
भोग भाव के बिना प्रभु को समर्पित जोकर्म होते हैं , वे हैं - सात्विक कर्म ॥
[ख] श्लोक - 18.24
भोग भाव से परिपूर्ण कामना , क्रोध , मोह , भय , अहंकार की उर्जाओं से
जो कर्म होते हैं , वे हैं - राजस - कर्म ॥
[ग] श्लोक - 18.25
यहाँ प्रभु कहते हैं ......
ऐसे कर्म जिनके पीछे तामस गुण की ऊर्जा हो जैसे - मोह , भय
और आलस्य , उनको तामस कर्म कहते हैं ॥
गीता के सभी श्लोक इतनें मुलायम हैं की उनको भोगी जितना चाहे
उतना अपनी तरफ झुका सकता है ॥
अब आप देखिये गीता सूत्र - 8.3 को जिसमें प्रभु कहते हैं ----

भूत भाव उद्भव कर: विसर्ग: कर्म संज्ञित: --- इस श्लोकांश का आप
जो चाहें वह अर्थ लगा सकते हैं ॥
सर्ब्पल्ली राधाकृष्णन जो अर्थ लगाते हैं , उसे आपनें ऊपर देखा और मैं इसका जो अर्थ लगाता हूँ
वह है ---
वह कृत्य जो भावातीत की स्थिति में पहुंचाए , उसे कर्म कहते हैं ॥
कर्म एक सहज माध्यम है जो सब को मिला हुआ है जैसे .....
भूख लगनें पर पेट के लिए कुछ चाहिए , और इस कामना की पूर्ति अनेक तरह से हो सकती है ।
अपनी पीढी आगे बढानें के लिए काम का सहारा लेना पड़ेगा अतः काम का प्रयोग भी अनेक ढंगों से
हो सकता है । तन को नंगेपन से बचानें के लिए वस्त्र का प्रयोग करनें के भी अनेक ढंग हैं ।
सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करनें की सामग्रियां भी अनेक हो सकती हैं ।
अब देखिये और समभिये ----
आप मनुष्य योनी में हैं , पशु योनी में नहीं जो मात्र भोग - योनी ही है ।
मनुष्य इस संसार में निराकार प्रभु को अपने कर्मों से साकार रूप में प्रदर्शित कर सकता है और
दूसरी ओर पशुओं की लाइन में खडा हो कर पशु भी बन सकता है ।
सारे बिकल्प हैं - मनुष्य के लिए , जो चाहे वह , वह चुन सकता है ॥
कर्म करता गुण हैं , गुणों में भावात्मक उर्जायें हैं जो कर्म करने की भी उर्जायें हैं अतः ......
कर्म माध्य से भावातीत कीस्थिति होगी - गुनातीत कीस्थिति जो ब्रह्म - ऊर्जा से भर देती है ॥
आप जो अर्थ चाहें गीता सूत्र - 8.3 का वह अर्थ लगा सकते हैं ,
बश इतनी होश बनी रहे की -----
आप प्रभु के आयाम से ज्यादा दूर नहीं हैं ॥

====== ॐ ======

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