Wednesday, November 10, 2010
ब्रह्म को तत्त्व से जानो
अब हम गीता से ब्रह्म से सम्बंधित कुछ ऐसे श्लोकों को
ले रहे हैं जिनको गहराई से समझना
चेतन मय बना सकती है , तो आइये ! आप आमंत्रित हैं ,
गीता की इस पावन यात्रा के लिए ॥
गीता श्लोक - 7.5
अपरा इयं इतः तु अन्यां प्रकृतिं विद्धि में परां ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत ॥
प्रभु कह रहे हैं -----
मेरी दो प्रकृतियाँ हैं ; एक अपरा और दूसरी परा , परा प्रकृति जिसको चेतना नाम से भी जाना जाता है ,
वह संसार में जितनें जीव हैं , सबके जीवों को धारण करती है ॥
गीता श्लोक - 14.3
मम योनिः महत ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधामि अहम् ।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत ॥
ब्रह्म सभी जीवों का बीज है , जिसको गर्भ में मैं रखता हूँ ।
गीता श्लोक - 14.4
सर्व - योनिषु कौन्तेय मूर्तयः संभवन्ति या: ।
तासां ब्रह्म महत योनिः अहम् बीज प्रद: पिता ॥
ब्रह्म निः संदेह जीवों के बीजों को धारण करता है लेकीन बीजों को उसे मैं ही देता हूँ ॥
गीता के यहाँ चार सूत्रों को एक क्रम में इस प्रकार से
आप को दिया गया है जिस से आप को
प्रभु , ब्रह्म एवं समस्त जीवो के सम्बन्ध को
समझनें में कोई कठिनाई न हो ॥
===== ॐ ======
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