Thursday, December 9, 2010
गीता आध्याय - 02
भाग - 06
गीता अध्याय - 02 में हम इस अध्याय को चार भागों में बिभक्त करके देख रहे हैं जिनमें
पहला भाग है ......
सामान्य सूत्र - ध्यानोपयोगी
यहाँ हम 21 श्लोकों को देख रहे हैं
और आगे इस अंक में चार श्लोकों को अब देखते हैं ॥
गीता - 2.15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुष - रिषभ ।
सम दुःख सुखं धीरं स : अमृतत्वाय कल्पते ॥
सुख - दुःख में समभाव वाला ब्यक्ति , मुक्ति पथ पर होता है ॥
man who is beyond choice ,
who remains unchanged in dualities is fit man to get
nirvana .
गीता - 2.48
योगस्थ : कुरु कर्माणि संगः त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्धि - असिद्ध्यो : समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
सम भाव ही समत्व - योग है ॥
samatva - yog is known as yoga of intelligence , such - yogin acts without
attachmment .
गीता - 2.56 और 4.10
यहाँ गीता कहता है :
राग , भय और क्रोध से अप्रभावित ब्यक्ति -
समत्व - योगी होता है ॥
unaffected by passion , fear , anger and rage ,
is the samatva - yogi [ who remains even
under all circumstances ] ।
enough for today.........
enjoy krishna - consciousness
gita chapter II will continue ----
===ॐ ====
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