Wednesday, December 15, 2010

गीता अध्याय - 02

भाग - 09

हम गीता - अध्याय - 02 को चार भागों में यहाँ देख रहे हैं
जिनमें पहला भाग है ध्यानोपयोगी - सूत्रों का ।
इस भाग में हम इस अध्याय के इक्कीस श्लोकों को देख रहे हैं
और अन्य अध्यायों से भी इक्कीस श्लोकों
को देखा जाएगा ।
आज इस अंक में हम ले रहे हैं गीता श्लोक - 2.12 को
जो इस प्रकार है ------

श्लोक -2.12
न तु एव अहम् जातु नासं -
न त्वं न इमे जन - अधिया : ।
न च एव न भविष्याम : -
सर्वे वयमत : परमं ॥

यहाँ गीता कह रहा है -----
मृत्यु संसार रंग मंच का एक झीना पर्दा सा है जिसकी आड़ में आत्मा चोला बदलता है ।

यहाँ इस श्लोक में प्रभु कह रहे हैं ......
पहले ऐसा कभी नहीं हुआ की मैं , तुम और यहाँ इकट्ठे हुए ये राजा लोग न रहे हों
और भविष्य में भी ऐसा
कभी न होगा जब हम सब न होंगे ।
यदि ऎसी स्थिति हम सब की है फिर जो छोड़ कर जा रहे हैं या
जायेंगे उनके लिए क्या शोक करना ।
यहाँ आत्मा की उस स्थिति को दिखाया गया है जो आवागमन चक्र से जुड़ी हुयी है
लेकीन गीता - योगी
की आत्मा चोला न बदल कर अपनें मूल श्रोत परम में मिल जाती है
और वह योगी आवागमन से मुक्त
हो जाता है लेकीन -----
ऐसे योगी शादियों बात अवतरित होते हैं ,
हम सब को राह दिखानें के लिए ॥

Gita Shloka - 2।12 says ------

Death is like a screen - a very thin one behind it
the Soul transfers Itself from one body to other
when the former one does not remain in such
a sound condition that it could carry on IT further .
Lord Krishna says ......
Never was the time when i , you and all these kings
who are here to take part in this savage
were not
nor there will be ever a time
hence after
when we all shall cease to be .
बुद्ध और महाबीर के समय एक ऐसा प्रचलित योग था
जिस के माध्यम से योगी अपनें पिछले जन्मों के
झाँक सकते थे ।
बुद्ध इस ध्यान को आलय - विज्ञान कहते थे
और .....
महाबीर जाती स्मरण ॥

बश आज इतना ही

enjoy Gita and
make Gita the
way of your life

=====ॐ ======


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