Sunday, December 5, 2010

गीता अध्याय - 02



भाग - 04

गीता अध्याय - दो में आप अपनी जगह स्वयं तलाशे और आँखे बंद करके
दो घड़ी ही सही अपनें को प्रभु श्री कृष्ण के समक्ष
धर्म - क्षेत्र - कुरुक्षेत्र में देखते रहें ॥
यह स्थान दिल्ली और अमृतसर की परम पवित्र मार्ग पर है
जो लगभग 150 km. दिल्ली से
दूर है ।
आइये ! हम और आप चलते हैं गीता - अध्याय - दो की यात्रा पर --------
प्रारभ में बताया गया है की हमलोग इस अध्याय को
चार भागों में देखना चाहते हैं , जिनमें से
पहला भाग है ........
b-1 सामान्य ध्यान सूत्रों का ,
जिसमें कुल बीस सूत्र हैं
और आज उनमें से
कुछ सूत्रों को हम यहाँ देखनें जा हे हैं ।
इस श्रेणी में जो सूत्र हैं उनका विवरण
कुछ इस प्रकार से है .....
2.2 , 2.7 , 2.8 , 2.11 , 2.12 , 2.14 , 2.15 , 2.38 , 2.41 ,
2.47 , 2.48 , 2.49 , 2.51 , 2.52 , 2.59 , 2.60 ,
2.62 , 2.63 , 2.66 , 2.67

आइये उतरते हैं इन सूत्रों में .......
सूत्र - 2.2
प्रभु अर्जुन की बातें सुननें के बाद कहते हैं ------
मैं यह नहीं समझ पा रहा की इस असमय में
तेरे को अज्ञान से उपजा यह शोक कैसे घेर लिया है ।
यह शोक न तो तेरे को मरनें के बाद स्वर्ग ले जा सकता है और न ही समाज में
उस स्थान को दिला सकता है
जिसके लिए तुम काबिल हो ।
Lord supreme says ------

I do not understand under which circumstances you
are having this negative energy
of dullness [ natural mode ] . This dullness mode - energy
is not going to take you to heaven and
will surely cause you disgrace .

गीता सूत्र - 2.7 + 2.8

अर्जुन कहते हैं ------
हे प्रभु !
धार्मिक विचार हमारी मानसिक कमजोरी है और यह तामस गुण की
नकारात्मक ऊर्जा हमारे भ्रम का
श्रोत है , आप मुझे कृपया उचित मार्ग दिखाएँ जिस से मैं इस से बाहर
निकल कर अपनी खोई हुयी
स्मृति को धारण कर के आप द्वारा बताये मार्क पर चल सकूं ॥

ऊपर जो बीस सूत्रों की सूची दी गयी है
उनमें से इन तीन सूत्रों को छोड़ कर
अन्य सत्रह सूत्र ध्यान सूत्र हैं ,
जिनको हम आगे देखनें वाले हैं ॥

शेष अगले अंक में ॥

==== ॐ =====




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