Friday, December 10, 2010

गीता आध्याय - 02



भाग - 07

समभाव - योगी

यहाँ इस अंक में हम देखनें जा रहे हैं गीता के कुछ मोतियों को , क्या आप तैयार हैं ?

[क] गीता सूत्र - 2.57
समभाव - योगी ज्ञानी होता है ॥
man with even mind , man whose mind is
not all the time fluctuating ,
is a man of stable intelligence .
यहाँ पहले गीता के तीन और सूत्रों को देखनें के बाद
देखते हैं गीता में
ज्ञान क्या है और
ज्ञान की प्राप्ति का माध्यम क्या है ?

[ख] गीता सूत्र - 6.5

नियोजित मन वाला स्वयं का मित्र होता है ॥
man of controlled mind is his own friend .

[ग] गीता सूत्र - 12.18 , 12.19

प्रभु अर्जुन से कहते हैं -----

हे अर्जुन समभाव वाले योगी मुझे प्रिय हैं ॥
यहाँ आप सोचिये की ......
स्वयं का मित्र होना क्या है ?
क्या हम स्वयं के शत्रु हैं ? जी हाँ -
वह जिसका तन कहीं और , मन कहीं और और बुद्धि कहीं और
लटक रही हो , वह स्वयं का मित्र कैसे हो सकता है ?
स्वयं का मित्र वह है ----
जो प्रभु से प्राप्त सूचनाओं में परम भाव रखता हो और
यह तब संभव है जब .....
तन , मन और बुद्धि की एक दिशा हो और मन में प्रभु बसा हुआ हो ॥

अब देखते हैं ज्ञान क्या है ?
गीता कहता है [ गीता सूत्र - 13.3 ]
ज्ञान है क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध जो -----
योग सिद्धि पर [ गीता सूत्र - 4.38 ] स्वतः मिलता है , प्रभु के प्रसाद रूप में ॥
gita says -----
awareness of .....
physical body and the Supreme one is called wisdom [ gyan ]

आज इतना ही ----
प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा ग्रहण करें
प्रभु सब के साथ है
बश उसे अपनें अन्तः कर्ण में बसाना है ॥

==== ॐ ======

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