भाग - 15
कर्मणि एव अधिकार :
मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्म फल हेतु
भू : मा ते संग : अस्तु अकर्मणि ॥
गीता - 2.47
कर्म करना अधिकार है किन्तु फल की चाह का करना अधिकार नहीं है ।
हे अर्जुन !
तुम अपनें कर्मों के फल का कारण न समझो और न ही कर्म न करनें की आसक्ति से बधो ।
Every one has gifted action - energy from the nature [ prakriti ] ।
Every one is bound to work and the thaught , not to work is against the nature .
Work done without attachment leads to Karm - Yoga .
गीता के इस श्लोक को समझनें के लिए आप को देखना है
निम्न तेरह श्लोकों को , जो इस प्रकार हैं -----
3.5 , 18.11 ,18.48 , 3.27 , 3.28 , 3.33 ,
18.59 , 18.60 , 14.10 , 18.40 , 7.12 , 7.14 , 7.13
यहाँ इन श्लोकों को अभी तो नहीं दिया जा रहा लेकीन आगे चल कर आप इनको भी देख सकेंगे ।
अब इस श्लोक को देखते हैं :
मनुष्य हो या कोई और जीव - धारी , सब को एक सामान प्रकृति की
ओर से कर्म करनें का कारण मिला हुआ है ,
जिसको कोई नक्कार नहीं सकता और वह कारण है ------
भूख और काम - वासना ॥
भूख यदि न होती तो आज आकाश से करती बातें वाली बहु मंजिल्ली इमारतें न होती ,
मनुष्य तीन चौथाई समस्या समाप्त हो गयी होती ,
इसके साथ - साथ यदि काम - वासना भी न होती हो उस समय का मानंव कैसा होता ?
भूख , काम - वासना एवं सुरक्षा - ये तीन तत्त्व ऐसे हैं जो मनुष्य एवं अन्य जीवों को गुलाम बना कर
रखते हैं ।
गीता कहता है :
मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो .........
सब कुछ समझता है ----
स्वयं से लेकर प्रभु तक को समझ सकनें की ऊर्जा रखता है .......
काम - वासना से वासना को अलग करके
उस काम - ऊर्जा का प्रयोग प्रभु तक पहुंचनें में कर सकता है ....
अपने बंधनों को समझ कर निर्वाण की यात्रा कर के परम आनंदित हो सकता है .....
आगे अगले अंको में यदि आप मेरे साथ रहे तो
गीता के माध्यम से आप को यह पता चल जाएगा की
कर्म करना क्यों अधिकार है ....
कर्म - त्याग करना कैसे कठिन है ?.....
और कर्म - ऊर्जा को रूपांतरित करके कोई -----
भोगी से योगी कैसे बन सकता है ?
====== ॐ ======
Monday, December 27, 2010
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