Monday, December 13, 2010

गीता अध्याय - 02



भाग - 08 [ Part - 08 ]

अध्याय दो को चार भागों में बिभक्त करके हम यहाँ देख रहे हैं
और अभी प्रभाग - 01 ध्यानोपयोगी श्लोकों के अंतर्गत
इस अध्याय के कुछ सूत्रों को देख रहे हैं और उनके समर्थन में कुछ
अन्य सूत्रों को भी लिया जा रहा है जो
अन्य अध्यायों से हैं ।
अब हम यहाँ प्रभाग एक का आठवां अंक देखनें जा रहे हैं जिसमें
अध्याय - 02 का श्लोक 11 को लिया जा रहा है ।

श्लोक - 2.11
अशोच्यां अन्वसोचः त्वं ---
प्रज्ञावादां च भाषते ।
गत असून अगत असून ----
न अनुशोचन्ति पंडिता : ॥
यह श्लोक कह रहा है :
संभाव वाला योगी प्रज्ञावान एवं पंडित होता है ॥
इस श्लोक से साथ हम आगे चाल कर निम्न सूत्रों को भी देखंगे :-----
4.22 , 4.23 ,5.19 , 5.20 , 2.15 , 2.48 , 2.56 , 4.10
Here Gita says .......
The man whose mind is settled in the Supreme One ,
who is in choiceless awareness
does not grieve for those who are no more and who also does not
grieve for those who are under sufferings .
Arjuna ! here you are talking like a man having resolute understanding
[ stable intelligence ] , but you do not know who is pragyawan and pandita .

it is enough today ....
jump into .....
Krishna consciousness
without applying ...
your mind ...
and intelligence .

=========ॐ ======

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