Thursday, December 2, 2010

अहंकार की यात्रा और हम



सभी सम्प्रदायें कहती हैं ------

सब का मालिक एक लेकीन सभीं के अपनें - अपनें मार्ग हैं ,
अपनी - अपनी परम्पराएं हैं और
सब के अपनें - अपनें देवी - देवता और प्रभु की आस्थाएं हैं ।

गीता में प्रभु कहते हैं [ गीता अध्याय - सत्रह ] ......
तीन प्रकार के गुण हैं और तीन प्रकार के लोग हैं ।
सात्विक , राजस और तामस - तीन गुणों के लोगों की अपनी - अपनी आस्थाएं हैं ,
सब के अपनें - अपनें
साध्य हैं जिनको वे लोग कामना पूर्ति के लिए पूजते हैं ।
जिस दिन मनुष्य के दिमाक से ऎसी धारणा को निकालनें में वैज्ञानिक
कामयाब हो जायेंगे की
परमात्मा से कोई कामना की पूर्ति संभव नहीं , उस दिन
परमात्मा इंसान के लिए मर जाएगा ।
बीसवीं शताब्दी के मध्य में नित्झे का यह कथन की ----
परमात्मा मर चुका है , अब वह कभी नहीं उठनें वाला क्योंकि ......
इंसानों ने उसे मारा है -- सम्पूर्ण पश्चिम में एक क्रान्ति ला दी और लोग
ऐसा महसूश करनें लगे जैसे
अभी - अभी जेल से निकल कर अपनें - अपनें घर को आ रहे हैं ।

मनुष्य का अहंकार एक कुशल कारीगर है जो ......
आसक्ति
कामना
क्रोध
लोभ
मोह
भय और
भगवान् , सब का निर्माण करता है और ऐसे कुशल कारीगर
को मनुष्य छोड़ना नहीं चाहता ।
ग्वालिअर , मोरैना , भिंड आदि के इलाके के जंगलों से आप कभी गुजरें ,
जगह - जगह पर आप को छोटे - छोटे मंदिर मिलेंगे जिनमें से अधिक
होंगे काली माँ के , शिव के और हनुमानजी के ।
क्या आप सोचते हैं की ये देवी - देवता कभी किसी के बहू - बेटियों
को लूटनें के लिए आशीर्वाद देते होंगे ?

अपनें - अपनें अहंकारों को देखें और उनसे हट कर
अपना मार्ग निर्धारित करें
और तब देखें ----
जीवन यात्रा के रंग को ॥

==== ॐ ======

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