Sunday, December 19, 2010

गीता अध्याय - 02

भाग - ११

पिछले अंक में हमनें गीता श्लोक - 2.14 के सम्बन्ध में कुछ बातें देखी थी ,
अब इस सूत्र के सम्बन्ध में
गीता के दो सूत्रों को और देखते हैं जो श्लोक - 2.14 के परिपूरक जैसे दीखते हैं ।


ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःख योनय एव ते ।
आदि - अन्तवन्त : कौन्तेय न तेषु रमते बुध : ॥ श्लोक - ५.२२
बुद्ध पुरुष इन्द्रिय भोगों में नहीं रमते जो क्षणिक आदि अंत वाले होते हैं ,

उनके ठहरनें का स्थान तो मात्र परम - आनंद ही है ।

Pleasure and pain are the integral elements of passion
and lust as sensed by the senses .
Under the influence of three gunas , whatever we get , is
pleasure coated pain which is also called as bhoga .
Buddha - an enlightened one does not have interest in such pleasures
because his abode is the supreme joy - param - ananda .

सूत्र - 18.38

यह सूत्र कहता है :

इन्द्रिय और बिषय के सहयोग से जो सुख मिलता है
वह प्रारम्भ में तो अमृत सा लगता है लेकीन वह
अमृत - अमृत कोटेड बिष होता है ॥

pleasure arises from the contact of senses and
objects appears like nector but this nector
contains in it - a poison .


गीता के तीन सूत्रों के माध्यम से आपनें देखा की ------
हम - आप जिसको सुख कहते हैं , वह सुख बुद्ध - पुरुष के लिए दुःख दिखता है ॥
हम जिसमें अमृत देखते हैं , बुद्ध -पुरुष उसमें बिष देखते हैं ॥
अब आप सोचो की .....
दो ब्यक्ति एक जगह एक साथ खड़े हैं .....
उनमें से एक का मुख पूरब की ओर है ....
और दुसरे का रुख पश्चिम की ओर है ....
फिर दोनों का मिलन क्या मिलन होगा ?
योगी से मिलनें के लिए पहली कुछ तैयारी तो करनी ही पड़ती है , यदि ----
तैयारी ठीक नहीं हुयी तो हम योगी को पहचानेंगे भी कैसे ?
चलिए गीता माध्यम से करते हैं गीता - योगी से मिलनें की तैयारी ॥
=== ॐ ====

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