परम श्री कृष्ण गीता में कहते हैं --------
इन्द्र [ 10.22 ] , वर्षा का आकर्षण [ 9.19 ] , वरुण [ 10.22 ] , वायु [ 10.31 ] , हिमालय [ 10.25 ]
गंगा नदी [ 10.31 ] , समुद्र [ 10.24 ] ....मैं हूँ । गीता के सात श्लोकों को एक जगह इसलिए दिया गया है जिनसे -------
आप के अंदर एक सोच की लहर पैदा हो और आप परमात्मा के रहस्य में डूब सकें ।
कहते हैं ------जब इन्द्र खुश होते हैं तब वरिश अच्छी होती है , भारत में इन्द्र की पूजा की जाती है जिससे अच्छी वरिश हो और अच्छी फसल हो । अब आप सोचना , जहाँ लोग इन्द्र को जानते भी नही हैं क्या वहाँ वरिश नही होती ?
सागर,नदी , पर्वत , वायु एवं ऐसा मौषम का होना जो वर्षा का कारण बनें, में एक समीकरण छिपा हुआ है जो पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है जिसको व्यक्त करनें की जरुरत भी नहीं दिखती । समुद्र का पानी वाष्पीकरण से आकाश में पहुंचता है , वहाँ उसमें परिवर्तन होता है जो बूँद-बूँद पहाड़ पर गिरता है , वहाँ से वह नदी का रूप धारण करके पुनः सागर की तलाश पर निकल पड़ता है --क्या आप इस प्रक्रिया को एक सरल प्रक्रिया मानते हैं ?
आप परमात्मामय होनें के लिए ऊपर दिए गए उदाहरणों में से किसी एक को पकडें धीरे-धीरे आप को सब मिलते चलेजायेंगे और आप के ह्रदय में एक लहर उठेगी जो परमात्मा में पहुंचा देगी ।
आप अभी तक परमात्मा को समझनें के लिए अनेक उदाहरण देखे जो भाव-रूप , निराकार-रूप और
साकार-रूप में परमात्मा को ब्यक्त कर चुके हैं , अब यह आप पर है की आप परमात्मा को कैसे चाहते हैं ?
=====ॐ======
Saturday, May 23, 2009
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