Thursday, May 14, 2009

परमात्मा ---7

यहाँ हम गीता के परमात्मा को बुद्धि स्तरपर समझनें की कोशिश कर रहे हैं जिसको नहीं समझा जा सकता
अतः हमें दिक्कत तो होगी लेकिन और कोई रास्ता भी नही दिखता, आईये अब हम गीता के कुछ
सूत्रों को देखते हैं ।
सूत्र - 5.14- 5.15 परमात्मा किसी के कर्म , कर्म- फल , कर्तापन की रचाना नही करता और किसी के अच्छे- बुरे कर्मों को ग्रहण भी नही करता ।
सूत्र - 13.31 परमात्मा हमारे शरीर में है पर कुछ करता नही है ।
सूत्र - 7.12 , 7.14 हमारे शरीर में परमात्मा एक द्रष्टा की भाति है ।
सूत्र - 9.4 , 9.5 भूतों में परमात्मा की आत्मा नही होती ।
सूत्र - 9.17 मनुष्य के कर्म-फल का दाता परमात्मा है ।
गीता के चार अध्यायों से आठ सूत्रों को एक जगह रखनें का एक मात्र कारण है की आप स्वयं इस बिरोधाभाषी
बात को समझनें की कोशिश करें , जब तक आप दूसरों की बात को पढ़ते रहेंगे तब तक आप को कुछ मिलनें
वाला नही , यहाँ सबकी अपनीं-अपनीं अलग-अलग यात्राएं हैं ।
J krishanamurti कहते हैं ---Truth is a pathless journey.
साधना में दो रास्ते हैं ---या तो सब को स्वीकारा जाए या सम को नक्कारा जाए , कभी हाँ और कभी ना
के मार्ग पर चलकर कही भी नही पहुंचा जा सकता । उपनिषदों में नेति -नेति की बात कही गयी है अर्थात
यह भी नहीं और वह भी नहीं । घड़ी की सुयी को सीधी दिशा में चलाओ या उलटी दिशा में दोनों स्थितिओं में
सुयी एक ही जगह पहुंचती है , साधना में भी कुछ ऐसा ही होता है । गीता साधक को कोई रूकनें का मौका
नही देता , कहता है -- चलते रहो जब समय आयेगा तूं पहुँच ही जाएगा ।
विचारों से विचार-शून्यता की स्थिति में पहुंचनें का और क्या मार्ग हो सकता है ?
विचारोंसे विचार-शून्यता , भावों से भावातीत , गुणों से गुनातीत , कर्म से अकर्म , राग से वैराग की यात्रा
का नाम ही गीता-साधना है ।
======ॐ======

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