Saturday, May 9, 2009

परमात्मा क्या है ? ----3

गीता कहानियों की किताब नही यह तत्व - ज्ञान की गणित है
अब आप गीता के परमात्मा को बुद्धि स्तरपर जाननें की कोशिश करें
१- गीता के निम्न सूत्रों को आप अच्छी तरह से समझ लें ----------
2.28, 2.16, 2.17, 9.19, 1312
ऊपर केसुत्रों का भावार्थ कुछ इस प्रकार हो सकता है .............
आज का ब्यक्त अपनें अब्यक्त से अब्यक्त की यात्रा का मध्य है । सत-असत दोनें परमात्मा से हैं पर
परमात्मा न तो सत है और न ही असत है । सत की कोई कमी नही और असतकी कोई सत्ता नही है ।
२- गीताके निम्न तीन सूत्रों को और देखें ............
8.20, 8.21, 8.3
ऊपर के तीन सूत्र कहते हैं की ...........
अभ्यक्त अक्षर ,परम अक्षर तथा अब्यक्त भाव , परमात्मा हैं ।
अक्षर का अर्थ है --जिसका कभी भी अंत न हो अर्थात सनातन लेकिन अब्यक्त भाव क्या है ? इस बात को हम
आगे चल कर देखेंगे ।
३- गीता के पाँच और सूत्र जो परमात्मा को ब्यक्त करते हैं .........
9.18, 10.3, 10.8, 10.32, 1039
गीता यहाँ कह रहा है - सृष्टि का आदि,मध्य, अंत परमात्मा है जो अजन्मा तथा आदि-अंत रहित है ।
४- गीता-सूत्र 13.15 कहता है ---सभी चर - अचर परमात्मा हैं और सब के अंदर -बाहर , समीप तथा
दूर में परमात्मा है ।
५- गीता के पाँच और परमात्मासे सम्बंधित सूत्र ..........
2.42, 2.43, 2.44, 12.3, 12.4
जब आप बार-बार इन सूत्रों को पड़ेंगे तो आप को एक बात दिखेगी ------
परमात्मा तथा भोग-भाव को एक साथ एक बुद्धि में नहीं रखा जा सकता और परमात्मा को मन-बुद्धि
स्तर पर नहीं समझा जा सकता ।
६- गीता सूत्र 7.3 बताता है ---परमात्मा को समझनें वाले लोग दुर्लभ होते हैं ।
गीता के 20 श्लोकों को आपनें ऊपर देखा --अब वक्त आगया है आप को सोचनें का की -------
परमात्मा को कैसे समझा जा सकता है ?
ऊपर जो कुछ भी गीता आप को बताता है उनसे आप के अंदर एक भाव बनता है । जब इन भावों के
माध्यम से आप भाव रहित हो जायेंगे तब आप में परमात्मा की किरण फूटेगी । शब्दों या भावों में
जो रुक जाता है उसकी परम की यात्रा खंडित हो जाती है । पूरे वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड में कोई सूचना स्थिर नही है
और कोईभी क्रिया कभी रूकती नही है अतः हमारी परम की यात्रा भी अंतहीन यात्रा है जिसमें एक समय
ऐसा भी आजाता है जब हमें अपना शरीर भी छोड़ना पड़ता है ।
परम-प्यार में डूबा योगी जब अपना शरीर त्यागता है तब उसे भी धन्य बाद करता है ----कहता है .....
हे शरीर ! तेरा धन्य बाद , यदि तूं न होता तो हमें आत्मा को बोध कैसे होता , सुख-दुःख का पता कैसे चलता
और हम संसार को कैसे समझते ?
गुणों से गुनातीत
भावों से भावातीत
भोग से योग
समय से समयातीत
शब्दों से निःशब्द -----
को समझना ही परम की यात्रा है
आप का सारा वक्त अपनें परिवार को सजानें और सवारने में गुजरता है कभी----
घड़ी दो घड़ी अपनें लिए भी लिकला करो जिसमें एकांत में बैठ कर यह जाननें की कोशिश करे की -----
मैं कौन हूँ ? किस से हूँ ? और किधर जाना था पर जा किधर रहा हूँ ? इस घड़ी दो घड़ी में हो सकता है आप को
सत्य की अनुभूति मिल जाए ।
======ॐ========

No comments:

Post a Comment

Followers