जब कृष्ण साकार रूप में हम सब के साथ थे तब हम लोगों में से कितनें उनके साथ थे ?
उस समय उनको परमात्मा माननें वाले कितनें थे ?
श्री कृष्ण मथुरा को छोड़ कर द्वारिका क्यों गए ?
असुर कौन थे ?
इन प्रश्नों के सम्बन्ध में आप को अपनी बुद्धि लगानी है तब आप की बुद्धि स्थिर हो सकाती है जो गीता का उद्धेश्य
भी है। गीता में अर्जुन का पहला प्रश्न है---हे प्रभु आप कृपया मुझे स्थिर प्रज्ञ की पहचान बताएं ।
जब कंश का अंत होगया तब लोगों ने समझा की अब शान्ति का वातावरण होगा लेकिन ऐसा हुआ नही , कंश
के समर्थकों का कहर तब भी जारी था और श्री कृष्ण लोगों के हित को देखते हुए मथुरा को छोड़ कर द्वारका
चले गए ।
गीता सूत्र 4.7, 4.8 कहते हैं-------
परमात्मा निराकार से साकार रूप धारण करता है ---सत पुरुषों की रक्षा करनें के लिए, पापियों के विनाश
के लिए तथा धर्म की स्थापना करनें के लिए । अब आप सोचो की क्या एस हुआ भी ?
महाभारत की लडाई समाप्त हुई , श्री कृष्ण द्वारका वापस चलेगये, श्री कृष्ण अपना शरीर त्याग कर अव्यक्त में
चले गए और द्वारका अरब सागर में समा गया , क्या परमात्मा जिस स्थान पर रहें हो उस स्थान की ऐसी
दशा होनी चाहिए ? अब आगे और देखिये--द्वापर युग के बाद गया-गुजरा भोग युगके रूप में कली युग आगया ।
यदि द्वापर में पाप का अंत हुआ होता तो द्वापर के बाद पुनः सत-युग आना चाहिए था न की कलि युग ।
श्री कृष्ण की लडाई असुरों से थी , आख़िर ये असुर थे कौन ?
असुरों का काले रंग से गहरा सम्बन्ध था , ऐसी बात पुरानों के आधार पर देखि जाती है । जब महाभारत
युद्ध हुआ उस समय विश्व में तीन पूर्ण विकशित सभ्यताएं थी ; एक हमारी सभ्यता, दूसरी इराक में थी
और तीसरी थी मिस्र में । इराक सभ्यता में एक स्थान उत्तर में था जिसका नाम था - असुर आज भी वह जगह
है । यह सभ्यता तीन भागों में थी ; उत्तर में असुर स्थान के चारों तरफ़ थी , मध्य भाग की सभ्याता को
बैबिलोंन कहते थे और दक्षिण में जो थी उसे सुमेर नाम से जाना जाता था । यहाँ के लोगों के पास उच्च कोटि
की ज्योतिष एवं विज्ञान था। क्या ऐसा सम्भव नही की भारत में आकार जो लोग श्री कृष्ण से लड़ रहे थे वे
इराक के असुर थे । सुमेरु लोग अपनें को काले सर वाले इन्शान भी कहते थे ।
गीता आप का पिछले कई हजार साल से इन्तजार कर रहा है , अब तो उसे अपनाइए ।
=====ॐ========
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