Friday, May 8, 2009

परमात्मा क्या है ?

गीता मोती की हमारी यात्रा अब आखिरी पड़ाव पर आ पहुँची है । इस यात्रा में हम आप को केवल गीता में
सिमित रखनें की कोशिश किए हैं , गीता के नाम पर महाभारत की कहानियों से आप को जोड़ने की कोशिश
कहीं भी नही की गयी है । आप से मात्र एक प्रार्थना है , आप कभी भी गीता को महाभारत से जोडनें का यत्न
न करें , गीता की यात्रा अलग है और महाभारत की यात्रा अलग है । गीता का जन्म ठीक महाभारत- प्रारंभ के
समय हुआ है ,गीता महाभारत के युद्ध को नहीं देखा है और जब आप गीता में हो तो आप को भी महाभारत को
नहीं देखना चाहिए । अब आप गीता के परमात्मा से मिल रहे हैं , आप का तन-मन शांत होना चाहिए और
आप को ऐसा लगना चाहिए की आप परमात्मा से परमात्मा में हैं ।
हम पहचानते हैं उसे --जिसे जानते हैं
हम जानते हैं उसे ----जिसे इन्द्रियाँ जानती हैं
इन्द्रियाँ जानती है उसे ---जिसमें रूप,रंग, ध्वनी , गंध एवं संवेदना हो
फ़िर आप गीता के परमात्मा को कैसे जान पायेंगे ? क्योंकि गीता कहता है -------
भोग - भगवान् को मन-बुद्धि से नहीं समझा जा सकता
भोग- भगवान् को एक साथ एक बुद्धि में रखना सम्भव नहीं ...अब आप को सोचना है की .....
परमात्मा को कैसे जाना जाए , क्या यह सम्भव नहीं ?
ध्वनी के माध्यम से परम शुन्यता की अनुभूति पाना सम्भव है .....
साकार से निराकार की अनुभूति में उतरना आसान है ......
भोग के माध्यम से योग में उतरना सुगम है ......
भावों से भावातीत को जानना सरल है ..........
यदि हम इतना समझनें में सफल होते हैं फ़िर परमात्मा को खोजनें की जरुरत नहीं पड़ती क्योकि .......
वह कण-कण में है .....
उस से एवं उसमें सब हैं ....
जो हैं सब उसके फैलाव के कारण हैं ......
वह सब के अंदर-बाहर एवं सर्वत्र है .......
टाइम-स्पेस उस से एवं उसमें है .......
गीता का परमात्मा प्रकृत-पुरूष का श्रोत है ....
प्रकृत - पुरूष से पूरा ब्रह्माण्ड है ।
=======ॐ========

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