Tuesday, May 19, 2009

परमात्मा ----9

हम जिसको जीवन समझते हैं वह जीवन का एक अंश मात्र है ।
हम जिस से ब्यक्त होते हैं वह अब्यक्त है और अंत के साथ पुनः अब्यक्त जीवन प्रारंभ होता है ।
ब्यक्त जीवन में अब्यक्त जीवन को जानना , साधना है और ब्यक्त जीवन में सिमट कर रह जाना , अज्ञान- है । आईये अब गीता के 10 श्लोकों से परमात्मा के ब्यक्त - अब्यक्त रहस्य को समझते हैं जिसका सीधा सम्बन्ध हमारे जीवन से है ।
गीता-सूत्र 10.32, 10.39, 9.18
परम कह रहे हैं -------------
तुम्हारा मैं आदि , मध्य और अंत हूँ ।
गीता-सूत्र 7.9
परम कह रहे हैं ------------------
मैं तुम्हारा जीवन हूँ ।
गीता-सूत्र 10.29
परम कह रहे हैं ------------------
यमराज मैं हूँ ।
गीता-सूत्र 10.33, 11.32
परम कह रहे हैं -----------
महा काल मैं हूँ ।
गीता-सूत्र 10.35
परम कह रहे हैं -----------
मृत्यु मैं हूँ ।
गीता-सूत्र 13.16
परम कह रहे हैं ------------
भरण-पोषण करता मैं हूँ ।
गीता-सूत्र 13.31
परम कह रहे हैं -------------
शरीर में परमात्मा है पर करता कुछ नही है ।
गीता के इन सूत्रों में जो राज छिपा है वह उसका कोई अंत नही है , सीमित सूत्रों में अनंत को पकडनें का
यह गीता का प्रयत्न केवल एक बात कहना चाहता है ......सोचो जितन सोच सकते हो लेकिन कुछ मिलनें
वाला नही जिसको तूम अपनें संशय बुद्धि में बाँध सको --हाँ सोच - सोच कर सोचके बाहर जब तुम
पहुंचोगे तब सत्य स्वतः दिखनें लगेगा ।
जीवन क्या है ? नानक कहते हैं ....नानक दुखिया सब संसार , मीरा की नम आँखें जीवन को क्या बताती हैं ? ,
बुद्ध ध्यान में मिली परम शून्यता को जीवन कहते हैं और एक भोगी काम में डूबे रहने को जीवन समझता है ।
गीता कहता है भाग लो जितना भागना चाहता है , लेकिन इतना समझो की जहाँ भी जाओगे तुम परमात्मा में
ही अपनें को पाओगे ।
जीवन एक अंतहींन यात्रा है जो अब्यक्त से निकल कर ब्यक्त होता है और धीरे-धीरे अब्यक्त की ओर सरकता रहता है पर तुम्हे इसका पता नही लगता ।
ब्यक्त जीवन में अब्यक्त को खोजना , साधना है और ब्यक्त जीवन में भोग में उलझ कर रह्जाना पशुवत जीवन है ।
इतना सोचो की हम मनुष्य हैं अतः हमें कुछ तो ऐसा करना ही है जो पशुओं से भिन्न हो ।
पशु भोजन की तलाश करते हैं , बच्चे पैदा करते हैं और उनको पालते हैं , रहनें के लिए घर की ब्यवस्था भी करते हैं यदि नही करते तो एक परमात्मा का स्मरण जो हम मनुष्य कर सकते हैं ।
परमात्मा से अस्तित्व को समझो उसकेलिए अपनें ह्रदय में जगह बनाओ तब पता चलेगा की तूम कौन हो ?
स्व से परिचय होना ही परमात्मा के आयाम में पहुंचाता है ।
=====ॐ=======

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