कर्म परमात्मा से जुडनें का एक सुगम माध्यम है जो सब को मिला हुआ है ----
गीता के कुछ बचनों को आप यहाँ देखें और ........
समझनें का यत्न करें की यह कैसे सम्भव हो सकता है ।
गीता सूत्र - 2.47, 2.48
आसक्ति एवं चाह रहित कर्म समत्व योग है ।
समत्व अर्थात सम भावऔर सम भाव सीधे परमात्मा में पहुंचाता है ।
गीता सूत्र - 4.22
समत्व योगी को कर्म नहीं पकड़ पाते ।
गीता सूत्र - 3.4
कर्म न करनें से सिद्धि नहीं मिलती ।
गीता सूत्र - 3.20
आसक्ति रहित कर्म से सिद्धि मिलती है ।
गीता सूत्र - 18.49 , 18.50
आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म-योग की सिद्धि मिलती है जो ज्ञान - योग की परा निष्ठा है ।
गीता सूत्र 18.54 , 18.55
सम भाव योगी परा भक्त होता है जो हर समय परमात्मा से परमात्मा में होता है ।
गीता सूत्र- 2.69
ऐसे योगीके पीठ पीछे भोग होता है और उसकी आंखों में हर पल परमात्मा होता है ।
आप को यहाँ गीता के चार अध्यायों के 10 सूत्रों को दिया गया जो साधना के दृष्टि से कर्म-योग की बुनियाद हैं ।
आप इन सूत्रों पर अपना धान केंद्रित करके कर्म करें , धीरे - धीरे आप कर्म-योगी बन जायेंगे और आप को पता भी न चल पायेगा।
आसक्ति भोग का मूल तत्व है आप इसको छोड़ नही सकते लेकिन परमात्मा को केन्द्र बना कर यदि
कर्म करते रहेंगे तो एक दिन आप को पता चल जाएगा की आसक्ति क्या है ?
======ॐ=======
Saturday, May 23, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment