Aristotle said, " The energy of mind is the essence of life "
अरिस्तोटलकी इस बात को हम यहाँ गीता में देखते हैं --------
गीता-सूत्र 2.62
मनन से आसक्ति बनती है ।
गीता - सूत्र 6.4
आसक्ति से संकल्प उठता है ।
गीता - सूत्र 6.24
संकल्प से कामना आती है ।
गीता-सूत्र 2.53
मोह के साथ वैराग नही आता ।
गीता-सूत्र 15.3
वैराग के बिना संसार का बोध नही होता ।
गीता- सूत्र 4.38
योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है ।
गीता-सूत्र 13.2
ज्ञान से क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का बोध होता है ।
अरिस्तोटल की बात चौथी शताब्दी ईशापुर्ब की है और गीता की बात ईशापुर्ब पाँच हजार वर्ष की है।
अरिस्तोटल अपनी बात का कोई ख़ास विस्तार नही दिया लेकिन गीता ऊपर के सात सूत्रों में पूरा विज्ञानं दिया है जिसमें कोई संशय की गुंजाइश नही है ।
गीता कहता है , कितना भाग सकते हो , भागनें की कोई सीमा नही पर तेरे शरीर की सीमा है ।
यदि तुम स्वयं को जानलो तो संसार को जान लोगो और फ़िर परमात्मा को जाननें में कोई अड़चन नही
आयेगी । जैसा तेरा शरीर है वैसा ही ब्रह्माण्ड है और तुम एवं ब्रह्माण्ड ,ब्रह्म का साकार रूप हो ।
क्षेत्र का अर्थ है विकार सहित स्थूल शरीर और क्षेत्रज्ञ का अर्थ है जीवात्मा जो शरीर को चालाता है ।
आसक्ति ,कामना , काम , संकल्प , विकल्प , भय , मोह , अंहकार, ये सब भोग के तत्व हैं जो बंधन हैं ,
जिनके साथ परमात्मा की ओर रुख करना सम्भव नहीं ।
वैराग अनुभव का फल है , यदिअनुभव सही है तो वैराग्य का आना आवश्यक है और यदि अनुभव बेहोशी
मेंहो रहा है तो वैराग कैसे आयेगा ?
भोग योग का माध्यम है , माध्यम से चिपक कर रहना जीवन को स्थिर बनाता है और जीवन की स्थिरता मृत्यु है ...जीवन तो एक धारा है --धारा अर्थात जो बहती रहे , बहते-बहते सागर से जा मिले ।
आप यदि मुक्त जीवन जीनें का आनंद लेना चाहते हैं तो एक काम करें , अपनें मन का पीछा करनें का अभ्याश करें , कुछ दिनों बाद आप भोग- तत्वों की पकड़ से मुक्त होनें लगेंगे और तब आप को आनंद की झलक मिलनें लगेगी --ज्यादा नही मात्र कुछ दिन करके देखिये , इसमें आप का क्या लगनें वाला है ?
=====ॐ========
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