Wednesday, May 13, 2009

परमात्मा ---- 6

गीता की चर्चा हो और उस चर्चा में काम [ sex ] शब्द का प्रयोग किया जा रहा हो , बात कुछ अलग सी
दिखती है ।
गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिनमें 556 श्लोक परम श्री कृष्ण के हैं और उनमें से 100 श्लोकों से कुछ अधिक
श्लोक परमात्मा को ब्यक्त करते हैं । यहाँ हम परमात्मा श्रृंखला के अर्न्तगत गीता के कुछ चुनें हुए सूत्रों को
देखनें जा रहे हैं ।
गीता में परम श्री कृष्ण कहते हैं -----------
गीता सूत्र 7.8 ---पुरुषों में पुरुषत्व , मैं हूँ ।
गीता सूत्र 10.28---कामदेव , मैं हूँ ।
गीता सूत्र 7.10----सृष्टि का बीज , मैं हूँ ।
गीता सूत्र 7.11----काम[sex] , मैं हूँ ।
ऊपर के चार सूत्रों को आप गीता में बार-बार पढ़ें और इनको अपनें ध्यान का माध्यम बनाएं ।
जब आप इन सूत्रों को समझ लेंगे तब आप को निम्न सूत्रों को भी देखना चाहिए ...........
गीता सूत्र 3.37--3.47 , 5.23 , 5.26--5.28 , 16.21
गीता में [सूत्र 3.36 ] अर्जुन का तीसरा प्रश्न इस प्रकार से है -------
मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों करता है ?
परम श्री कृष्ण कहते हैं .....
मनुष्य काम के सम्मोहन में पाप करता है ।
काम के सम्बन्ध में जो 12 सूत्र दिए गए हैं उनसे निम्न बातें सामनें आती हैं ..........
काम राजस गुन का मुख्य तत्व है । राजस गुन के साथ परमात्मा से जुड़ना असंभव है [6।27] , काम , क्रोध
और लोभ नरक के द्वार हैं । काम का सम्मोहन बुद्धि तक होता है । मन के माध्यम से इन्द्रीओं से
मैत्री स्थापित करनी चाहिए , जब ऐसा होजाए तब आत्मा को केन्द्र बनाना चाहिए क्योंकि आत्मा पर
काम का सम्मोहन नही होता । आत्मा जब केन्द्र बन जाता है तब परमात्मा अधिक दूर नही होता ।
विकार सहित स्थूल शरीर में निर्विकार जीवात्मा ही परमात्मा है ।
अब समय आगया है की आप ऊपर के सन्दर्भों के आधार पर गीता के इस रहस्य को समझेंकी परम
क्यों कह रहें हैं ...मैं काम हूँ ?
गुणों के तत्वों जैसे कामना, आसक्ति , क्रोध , लोभ , मोह , भय , अंहकार का जब काम में अभाव होता है
तब वह काम परमात्मामय होता है ।
काम एक ऊर्जा है जो विकार रहित ऊर्जा होती है लेकिन जब उस ऊर्जा में गुणों का प्रभाव पड़ जाता है तब
वह ऊर्जा वासना-ऊर्जा में बदल जाती है । वासना-ऊर्जा नरक की ओर खिचती है और निर्विकार काम-
ऊर्जा --जिसको प्यार कहते हैं , परमात्मा में पहुंचाती है ।
=====ॐ=======

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