Thursday, August 5, 2010

गीता अमृत - 01

गीता श्लोक 4.10 , 2.56

गीता में प्रभु कहरहे हैं -----
राग भय एवं क्रोध रहित संभव में योगी स्थिर प्रज्ञ होता है और अगले श्लोक में कहरहे हैं ----
राग भय एवं क्रोध रहित योगी ज्ञान के माध्यम से प्रभु में होता है ।

अब देखते हैं राग , क्रोध एवं भय क्या हैं ?
राग और क्रोध राजस गुण के तत्त्व हैं और राजस गुण प्रभु मार्ग में एक मजबूत अवरोध है [ गीता - 6.27 ]
मोह तम गुण का तत्त्व है और सूत्र - 2.52 में प्रभु कहरहे हैं .... मोह के साथ बैराग्य में उतरना असंभव है एवं
बिना बैराग्य भोग संसार को समझना संभव नहीं ।

प्रभु के कुछ सूत्रों को आप को सादर सेवार्पित करके मैं चाहूँगा की आगे की यात्रा इन सूत्रों के सहारे आप स्वयं करें ।
प्रभु आप के अन्दर है आप गुण - तत्वों के सम्मोहन से बाहर निकल कर प्रभु को निहार सकते हैं - यह मैं नहीं
प्रभु श्री कृष्ण कहरहे हैं ।

===== ॐ ======

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