Monday, August 2, 2010
गीता श्लोक 3.19,3.20
अनासक्त कर्म राजा जनक की तरह बिदेह बनाकर प्रभु में पहुंचाता है ।
गीता यहाँ कह रहा है -----
भोग कर्म के माध्यम से यदि तुम साधना में चलना चाहते हो तो कर्म तुम क्यों कर रहे हो , इस बात को अपनें
साधना का बिषय बनाओ क्योंकि इस खोज में भोग तत्वों की पकड़ का पता चलेगा और गीता साधना में
गुण साधना इसी का नाम है ।
गुण तत्त्व या भोग तत्त्व हैं - काम , आसक्ति , कामना , क्रोध , भय , मोह , अहंकार , लोभ । जब कर्म होनें के पीछे
इन तत्वों में से किसी एक तत्त्व की भी छाया न हो तो वह कर्म भोग कर्म न हो कर योग कर्म हो जाता है ।
राजा जनक राजा थे लेकीन उनसे जो भी कर्म होता था उसमें वे स्वयं को करता नही देखते थे अपितु द्रष्टा
देखते थे । गुण तत्त्व ज्ञान की साधना में कर्म करनें वाला गुणों को करता देखता है और स्वयं को साक्षी
समझता है ।
आसक्ति रहित कर्म प्रभु का द्वार खोलता है , ऎसी बात गीता के माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं ।
प्रभु बार बार अर्जुन को यही बात बताना चाहते हैं की अर्जुन जो तुम करो उसके पीछे कोई भोग - कारण न हो और
जब ऎसी स्थिति में कर्म होनें लगें तो तेरा मार्ग सीधे मेरी ओर जा रहा होगा जो तेरे को परम आनंदित बनाकर
अंततः तेरे को निर्वाण में पहुंचा देगा जो मनुष्य जीवन का परम लक्ष होता है ।
===== ॐ =======
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nice thought
ReplyDeleteMANVJESHA KARM KRTA HA WESE HI USKIPHAL KI ICHHAHOTI HA
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