Saturday, August 28, 2010
गीता अमृत - 13
## गीता श्लोक - 13.3
क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध , ज्ञान है
## गीता श्लोक - 4,38
योग - सिद्धि का फल ज्ञान है
योग क्या है ?
वह कृत्य जो रुख को प्रभु की ओर कर दे , उसको योग कहते हैं ।
योग प्रभु से जुडनें का मार्ग है
गीता यह भी कहता है ------
जिस बुद्धि में भोग भाव हो उसमें प्रभु का भाव उठना संभव नहीं , फिर क्या करें ?
गीता की सीधी सी गणित है ......
मन - बुद्धि से भोग की पकड़ को दूर करो , प्रभु अन्दर आनें का इन्तजार ही कर
रहा है ।
भोग - भाव को कैसे दूर करें ?
भोग से भोग में हम हैं , भोग कोई बस्तु नहीं की उठा कर स्टोर में फेक दिया ,
भोग तत्वों की समझ ,
भोग से
परे की यात्रा कराता है और इस यात्रा का नाम है -----
प्रभु ॥
॥ ----- ॐ ----- ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment