गीता श्लोक - 8.21
परम गति के साथ अब्यक्त अक्षर की अनुभूति , आवागमन से मुक्त करती है ।
गीता के सूत्र ठीक वैसे हैं जैसे थिअरी ऑफ़ रिलेटिविटी के दिए गए आइन्स्टाइन के सूत्र । गीता के इस सूत्र में हम
देखते है .......
परम गति क्या है ?
अब्यक्त अक्षर क्या है , और ....
आवागमन से मुक्ति क्या है ?
परम गति क्या है ?
विज्ञान से आप एक कण से अपनें गलेक्सी तक पर एक नजर डालें , यहाँ सब गतिमान हैं , पृथ्वी जिस पर
हम सब हैं वह , सूर्य का चक्कर काट रही है , अपनें किल के ऊपर चारों ओर चक्कर काट रही है और हमारा
सौर्य मंडल अति तीब्र गति से अपनें न्युक्लिअस के चारों ओर चल रहा है अतः पृथ्वी भी इस गति में सामिल है ।
आप ज़रा सा काम करें -- पृथ्वी के डायामीटर से परिधी की गणना करे और फिर 24 घंटे x 60x60 से भाग दें
और जो आयेगा , वह होगा पृथ्वी की वह गति प्रति सेकेंड जिस से वह अपनी किली पर चल रही है , आप को ताजुब होगा यह जान कर की यह चाल १६००किलो मीटर से भी अधिक की है ।
अमेरिका में ध्यान पर कुछ प्रयोग हुए हैं और यह पाया गया है की मनुष्य जो ध्यान की गहराइयों में पहुंचता है
उसके अन्दर की ऊर्जा लगभग जब दो लाख सायकिल प्रति सेकंड की हप जाती है तब उस ध्यानी को यह
मह्शूश होनें लगता है की वह देह से बाहर है जिसको Out of body experience कहते हैं । आम आदमी के अन्दर
यह फ्रिक्योंसी लगभग तीन सौ के आस पास होती है । एक बार आइन्स्टाइन कहे थे की यदि कोई प्रकाश
की गति से चले तो वह अमर हो सकता है । परमं गति वह गति है जो प्रकाश के श्रोत की अर्थात प्रभु
की गति है । समाधि में प्रभु की अनुभूति जब होती है उस समय मनुष्य के अन्दर instuitive energy की
frequency लगभग 300,000 per second की हो जाती है जिसको परम गति का प्रारम्भिक स्तर कह
सकते हैं ।
अब्यक्त अक्षर क्या है ?
यह वह है जो ब्यक्त न हो सके पर जिसके होनें की अनुभूति हो । समाधि में पहुंचा योगी कैसे बक्त करेगा ? न उसके पास मन है , न इन्द्रियाँ , जब ब्यक्त करनें की ऊर्जा और साधन न हों तो ब्यक्त कैसे किया जा सकता है ।
परमात्मा अब्यक्त अक्षर है ; अक्षर का अर्थ है - सनातन , अविनाशी , आदि - अंत रहित ।
परम धाम क्या है ?
परम धाम वह है जिसमें विलीन होने पर विलीन होनें वाले का अस्तित्व समाप्त हो जाए और वह जिसमे विलीन हुआ है , वही बन जाए । जब योगी समाधि में प्राण त्यागता है तब उसे परम धाम पहुँचना कहते हैं ।
======= ॐ ======
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment