Tuesday, August 31, 2010

गीता अमृत - 16


गीता सूत्र - 9.29

प्रभु अर्जुन से कहते हैं .....

अर्जुन मेरा कोई प्रिय - अप्रिय नहीं है लेकीन मेरा भक्त मुझको अपनें में होने का एह्शास
करता है ।
प्रभु का भक्त कौन है ?
क्या रोजाना सुबह - संध्या समय मंदिर जानें वाला , प्रभु का भक्त है ?
क्या मंदिर का पुजारी , प्रभु का भक्त है ?
क्या मंदिर बनवानें वाला , प्रभु का भक्त है ?
उत्तर है -- हाँ और ना
प्रभु के भक्त को पहचाननें वाला भी प्रभु का भक्त होता है ;
कबीर को मीरा पहचान
सकती हैं और -----
नानक को कबीर पहचान सकते हैं ।
गीता में प्रभु कहते हैं ......
** श्लोक -8.14-8.15 , 18.54, 18.55
प्रभु का परा भक्त हर पल प्रभु में रहता है ।
** श्लोक - 8.8
भक्त के मन में प्रभु के अलावा और कुछ नहीं होता ।
** श्लोक - 7.1
प्रभु का भक्त , प्रभु का द्वार होता है ।
** श्लोक - 7.3
सदियों बाद कोई भक्त पैदा होता है ।
तन , मन एवं बुद्धि से प्रभु में डूबा ............
भोग का द्रष्टा होता है ---
गुणों का साक्षी होता है ----
उसका कोई अपना - पराया नहीं होता ----
वह सब में प्रभु को देखता है , और ----
प्रभु में सब को देखता है ॥

===== ॐ ======

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