Saturday, August 28, 2021

पतंजलि समाधि पाद सूत्र 44 - 45 अलिङ्ग , लिङ्ग , विशेष , अविशेष

 महर्षि पतंजलि समाधि पाद के आखिरी कुछ सुत्रों में योग साधना और सांख्य साधना के अति महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर इशारा करते हैं ।

# सविचार - निर्विचार समापत्ति अलिङ्ग के बाद तक रहती है ~ समाधि सूत्र - 45 

💐 यहाँ समाधि पाद सूत्र - 17 , समाधि पाद सूत्र - 18 और 19 तथा साधन पाद सूत्र - 19 को एक साथ देखना चाहिए ।

💐-सम्प्रज्ञात समाधि 04 प्रकार की है - वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता । इनमें से प्रथम 03 समाधि सिद्ध योगी प्रकृति लय योगी होता है और अस्मिता सिद्ध योगी विदेह लय योगी होता है ।

💐 पञ्च महाभूतों के आश्रित मिली समाधि वितर्कानुगत समाधि होती है और पञ्च तन्मात्रों के आधारित मिली समाधि विचारानुगत समाधि कहलाती है । अस्मिता समाधि में योगी गुणातीत हो जाता है अर्थात अलिङ्ग की अवस्था में होता है।

💐 अब साधन पाद - 19 को देखें > मूल प्रकृति अर्थात तीन गुणों की साम्यावस्था अलिङ्ग है , महत् लिङ्ग है , 11 इन्द्रियां विशेष कहलाती हैं और 05 तन्मात्रों एवं अहँकार को अविशेष कहते हैं ।





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