मूल मंत्र सूत्र - 3
करता पुरुष
करता पुरुष को गीता में समझनें के लिए आप देखें निम्न श्लोकों को .......
2.45, 3.5, 3.27, 3.33, 5.14 - 5.15, 9.29, 7.12 - 7.13, 18.59 - 18.60
करता पुरुष शब्द से सीधा भाव जो निकलता है वह है -- वह जो कर्म करता हो , लेकीन नानक जी साहिब एक सिद्धि प्राप्त योगी थे , जो हर पल प्रभु में रहते थे , जो स्वयं को भी कर्म करता नहीं समझते थे , जो ब्रह्माण्ड के हर कण में प्रभु की आवाज सुनते रहते थे , जो हर में प्रभु की खुशबू पाते थे , ऐसे गुनातीत परम ऊर्जा से परिपूर्ण योगी जब कुछ बोलता है तो उसकी आवाज की आब्रिती को पकडनें में शादियाँ लग जाती हैं जैसे आइन्स्टाइन की थिअरी आफ रिलेटिविटी , अतः आदि गुरु यदि प्रभु को करता पुरुष कह रहे हैं तो इस शव्द में जरूर कोई निर्विकार ऊर्जा होगी ।
गीता कहता है ---- प्रभु किसी के कर्म , कर्तापन एवं कर्म फल की रचना नहीं करता , प्रभु का कोई प्रिय - अप्रिय नहीं है , वह सब में सम भाव से है और अपनें परम भक्तों के ह्रदय
में रहता है । गीता आगे कहता है ---गुण कर्म करनें की ऊर्जा देते हैं , गुण कर्म करता है , गुण प्रभावित सभी कर्म भोग कर्म हैं , गुणों से स्वभाव बनता है , स्वभाव से कर्म होते हैं । गीता आगे और यह भी कहता है --- गुणों का श्रोत प्रभु है , प्रभु गुनातीत है और गुण मनुष्य को प्रभु से दूर रखते हैं एव तीन गुणों के प्रभु निर्मित माध्यम को माया कहते हैं । माया से माया में
विज्ञान का टाइम - स्पेस है ।
हम आपको अपने विचारों में बंदी नहीं बनाना चाहते , हमारा उद्देश्य है आप को कुछ ऎसी जानकारियाँ देना जो आप में सोच पैदा कर सकें और उस सोच के आधार पर आप स्वयं कुछ कदम प्रभु की ओर रख सकें ।
साधना में दो मार्ग हैं ; या आप सब को स्वीकारें या सब को नक्कारें - दोनों मार्ग एक जगह आगे चल कर मिलते हैं जिसका नाम है - वैराग्य । वैराग्य से आगे की यात्रा परा भक्ति या ज्ञान के माध्यम से आगे चलती है जिसको ब्यक्त करना कठीन है । प्रभु को या आप करता पुरुष के रूप में अपनाएं या अकर्ता पुरुष के रूप में उसे द्रष्टा के रूप में देखें , इन दोनों से जो मिलेगा वह एक होगा , जिसकी अनुभूति तो होगी लेकीन जो ब्यक्त नहीं किया
जा सकता ।
** आदि गुरु का करता पुरुष गीता का गुनातीत है ....
** आदि गुरु का करता पुरुष गीता का द्रष्टा है ........
** आदि गुरु का करता पुरुष टाइम - स्पेस का न्युक्लिअस है ......
** आदि गुरु का करता पुरुष माया से अछूता है लेकीन माया पति है ।
आप अपनी साधना में करता पुरुष के अनंत रूपों में से किसी एक रूप को पकड़ सकते हैं लेकीन इतना होश
रखना -----
[क] प्रारभ में पकड़ मजबूत होनी चाहिते ....
[ख] धीरे - धीरे यह पकड़ अपने आप ढीली होती जानी चाहिए और .....
[ग] अंत में आप को कटी पतंग की तरह हो जाना है जैसे ......
आदि गुरु श्री नानक जी थे ।
=== एक ओंकार सत नाम =====
Friday, March 26, 2010
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