Saturday, March 27, 2010

श्री ग्रन्थ साहिबजी एवं गीता - 11

आदि गुरु मूल मंत्र सूत्र - 4 .... निर्भव [ Nirbhau ] --- Fearlessness

मैं कोई धर्म गुरु नहीं हूँ , मैं कोई मंदिर का पुजारी नहीं हूँ, मैं कोई विद्वान् नहीं हूँ - मैं एक साधारण
गृहस्त हूँ और अपनें जीवन में जो देखा है , जो किया है , जो पाया है उसके आधार पर उनको देखनें का
प्रयाश कर रहा हूँ जो मुझे अपनी ओर रह - रह कर खीचते रहते हैं जैसे श्री ग्रन्थ साहिब जी की आवाजें जो
सुबह सुबह गुरु द्वाराओं से सुनाई पड़ती हैं और गीता जो हमारे जीवन की ऊर्जा श्रोत है । यदि
हमारी बात आप को दुःख पहुंचाती हो तो आप मुझे अपना शिष्य समझ कर माफ़ कर देना ।

यहाँ हम गीता के निम्न सूत्रों को आधार बना कर मूल मंत्र सूत्र - 4 ... निर्भव को समझनें की कोशिश करनें जा रहे हैं --------
1.28 - 1.46 तक जहां मोह के लक्षण के सम्बन्ध में बातें हैं ।
2.52, 15.3, 13.2, 14.7, 14.8, 18.72 - 18.73
गीता कहता है --- भय तामस गुण का मुख्य तत्त्व है और जो प्रभु के मार्ग का एक प्रमुख रुकावट भी है ।
गुण तत्त्व भोग संसार की ओर खीचते हैं और प्रभु बैराग्य में बसता है ।

भय , मोह एवं भाव का गहरा सम्बन्ध है ; मोह - भय साथ - साथ होते हैं जो तामस गुण की उपज हैं । गुणों की ऊर्जा भाव पैदा करती है और भाव भगवान् से दूर रखते हैं । आदि गुरु श्री नानकजी साहिब निर्भय से प्रभु
को देखनें की बात कह रहे हैं और गुरुद्वाराओं में जो लोग आते हैं , उनको देखिये - ऐसा लगता है , उनके
चेहरों से जैसे ये बिचारे भय में डूबे हुए हैं , सिकुड़े हुए हैं और मत्था टेक कर पुनः वापिश भागनें की उपाय सोच रहे हैं -- ऐसा क्यों हो रहा है ? यदि ये लोग इतनें भयभीत हैं तो यहाँ आते ही क्यों हैं ?
गुरुद्वारा आनें वाले तो एकाध होते हैं ज्यादातर लोगों को यहाँ आना ही पड़ता है और कोई चारा भी तो नहीं ।
आदि गुरु साहिब अपने मूल मंत्र के माध्यम से बताना चाहते हैं -----------
भय के मूल को समझो , क्यों भयभीत हो ? जो तुम में भय पैदा कर रहा है उसको क्यों नही त्यागते ,
क्यों उसे अपनाए घूम रहे हो ? भय एक मर्ज है जिसकी की दवा प्राप्त करनें के लिए यहाँ आये हो ,
दवा मिल भी रही है लेकीन यह दवा तेरे को पसंद नही आ रही क्यों की तू उसे त्याग्नें को तैयार नहीं जो तेरे भय का कारण है फिर ऐसे में यहाँ आनें से क्या होगा ?
गुरुद्वारा में मत्था टेक कर भागनें वालों की संख्या बड़ी है , भागनें वालों का भय उनको वहाँ रुकनें नही देता क्योंकि
गुरुवाणी की हर आवाज उनके अन्तः कर्ण में जो उर्जा पैदा करती है वह उनकी असली तश्वीर उनके सामनें
ला कर खडी कर देती है जिसको वे छिपा कर रक्खना चाहते हैं ।

आदि गुरु नानकजी साहिब कहते हैं --- प्रेमिका जब अपने प्रेमी से मिलनें जाती है तो क्या वह भय में होती है ?
जिस प्यार में भय है वह प्यार प्यार नहीं वासना है । यदि तुन प्रभु को अपना प्यारा समझते हो तो फिर उस से
डरते क्यों हो ? खोल दो अपनी किताब को उसके सामनें और फिर देखो उसके रहम को । गीता कहता है ---
प्रभु किसी के पाप - पुन्य को ग्रहण नहीं करता , प्रभु किसी के कर्म , कर्म- फल एवं करता भाव की भी रचना
नहीं करता । तुम जो भी कर रहे हो वह सब गुण तुमसे करवा रहे हैं और इस राज को तुम नहीं समझते ।
तुम में जो गुण प्रभावी होता है , तेरे में वैसा भाव बनता है और तुम वैसा कर्म करते हो , जिसका फल तेरे को
सुख या दुःख का अनुभव देता है , इसमें प्रभु का कोई हाँथ नहीं होता ।
भय अज्ञान की जननी है ---
भय में मन बुद्धि अस्थीर होते हैं ------
भय में ब्यक्ति कभी हाँ तो कभी ना कहता है ----
भय में ब्यक्ति के ऊर्जा का नाश होता है ------

भय नरक का द्वार खोलता है ------
प्रभु का आनंद पाना है तो .....
भय की साधना मूल मंत्र को अपना कर करो

=== एक ओंकार सत नाम =====

No comments:

Post a Comment

Followers