जपजी मूल मंत्र सूत्र - 8
SAIBHANG .... SELF RADIATING
अब हम मूल मंत्र के आठवें चरण पर हैं । चौदह चरणों में आठवाँ चरण मध्य का चरण है जहां परम
प्रकाश की किरण की झलक तो मिलनी ही चाहिए । बहुत सी बस्तुएं प्रकृति में है जो स्वप्रकाषित हैं , जिनसे
प्रकाश निकलता रहता है और सभी एक बात की ओर हमें खीचती है और वह है परम प्रकाश का श्रोत - ब्रह्म
जो हर काल में सर्वत्र प्रकाशित है एवं जिसके प्रकाश से सब प्रकाशित हैं ।
मैक्स प्लैंक , आइन्स्टाइन , दिब्रोगली एवं सर्फती आदि जैसे वैज्ञानिक प्रकाश को अपनाया और ऐसा अपनाया
की प्रकाश का रहस्य आज भी रहस्य है लेकीन उनका भौतिक जीवन प्रकाश की खोज में समाप्त हो गया ।
प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन को जब परम प्रकाश की किरण दिखी तो वे उसकी गणित बनानें में जुट गए लेकीन
अपनें पच्चास साल के वैज्ञानिक जीवन में उसे ब्यक्त न कर पाए जो उन्होंनें देखा ।
गीता श्लोक - 14.6, 13.17, 15.6, 13.32,13.33,10.20, 13.22, 15.17 कहते हैं ---
सूर्य , चन्द्रमा एवं अन्य प्रकाश परम प्रकाश से हैं , सूर्य , चन्द्रमा एवं अग्नि का तेज परम तेज से हैं ।
परम प्रकाश सम्पूर्ण लोकों में है लेकीन वह प्रकाश उसको दीखता है जिसके अन्दर निर्विकार ऊर्जा
प्रवाहित होती है ।
जर्मनी का महान कबी गेटे जब आखिरी श्वाश भर रहा था तब बोला ......
बूझा दो सारे दीपों को क्योंकि अब मैं परम प्रकाश में हूँ , धन्य होगा वह कबी और धन्य होंगे वे लोग जो उसके
साथ थे । आदि गुरु नानक जैसा परम भक्त कई सदियों के बाद अवतरित होता है और हम जैसे भोगियों को
परम प्रकाश से अवगत कराना चाहता है लेकीन हमारी आँखों में भोग का अन्धकार इंतना गहरा बैठा है की
हम उसकी बातों को अनसुनी कर देते हैं और जहां हैं वहीं रह जाते हैं ।
परम प्रकाश में थे ......
आदि गुरु नानक ....
कबीर साहिबजी .....
परम हंस राम कृष्ण ....
चैतन्य महा प्रभु ....
योगा नंदजी और
परम प्रकाश में वह पहुंचता है
जो करता है नित जाप ...
जपजी साहिबजी का , लेकीन जप लोगों को दिखानें के लिए नहीं होना चाहीये , जप से परम के आयाम में
पहुंचनें का मार्ग दिखना चाहिए ।
जपजी का जप करता जब अपनें को जप में नमक के पुतले की भाँती घुला देता है , जब उसके पास .....
न तन होता है ----
न मन होता है ----
बुद्धि परम पर टिकी होती है , तब उस भक्त को ----
परम प्रकाश की किरण दिखती है ।
==== एक ओंकार सत नाम =====
Wednesday, March 31, 2010
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