Tuesday, March 23, 2010

श्र गुरु ग्रन्थ साहिब एवं गीता - 6

आदि गुरु नानक एवं कबीरजी साहिब मिलन

यह मिलन था , गंगा एवं यमुना का , जहां से ......
प्रकट होती हैं ......
अब्यक्त , निराकार सरस्वती ।

सूफियों की एक किताब है - किताबों की किताब जिसके सभी सफे कोरे थे , लेकीन लोगों नें इस किताब
का प्रकाशन करा कर इसको मारनें का पूरा प्रयाश किया , पर मार न पाए ।
नानकजी साहिब अपनें ह्रदय में स्थित किताबों की किताब को अपनें परम भक्त श्री गुरु अंगद जी साहिब को
अपनें अंत काल में सौप दिया जिसको दसवें गुरु गोबिन्दजी साहिब तक एक गुरु दूसरे को सौपता रहा लेकीन
आखिरी गुरु नें उस अब्यक्त किताबों की किताब को आखिरी गुरु का दर्जा दे कर श्री गुरु ग्रन्थ जी साबिब के रूपमें मनुष्यसमुदाय को कृतार्थ कर दिया । दसवें गुरु जी साहिब श्री ग्रन्थ साहिब जी को गुरु बना कर यह बतानें का प्रयाश किया की बाबर से औरंगजेब तक - लगभग 180 वर्षों में जो काम लड़ाई से न प्राप्त किया जा सका उसे प्यार कके माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है और भक्ति वह मार्ग है जो भोग से परम धाम तक का मार्ग है ।

एक बार आदि गुरु श्री नानक जी अपने पूरी यात्रा में काशी में कबीरजी साहिब के पास मेहमान थे । कबीरजी साहिब के भक्तो में उत्सुकता थी की उनको दो परम गुरुओं की बातों को सुननें का मौक़ा मिलेगा ।
श्री गुरु नानकजी साहीब तीन दिन रहे लेकीन दोनों के मध्य कोई चर्चा नहीं हुई , भक्तों को यह घटना कुछ मायुश किया । चौथे दिन श्री गुरु नानकजी साहिब जानें को तैयार हुए , कबीरजी साहिब उनको बिदा करनें के लिए बाहर छोडनें आये । दोनों परम संत एक दूसरे को देखा , दोनों की आँखें नम थी । श्री गुरु नानक जी चले गए लेकीन कबीरजी का एक भक्त बोल पडा - गुरूजी यह कैसा मिलन था ? न आप कुछ बोले न नानकजी कुछ बोले । कबीरजी मुस्कुराकर बोले - भक्त ! जो उनको कहना था वह वे कहे और मैं सूना , जो मुझे कहना था वह मैं कहा और वे सुनें , यदि तुम न सुन पाए तो मैं क्या कर सकता था ?
दो परम पवित्र आत्माएं जब मिलते हैं तब वहाँ वार्ता लाप नहीं होता , वहाँ ऊर्जा का लेंन - देंन होता है जिसको वह देख सकता है जो देखनें लायक होता है ।
सूफियों में प्रवचन नहीं होता मूक संबाद होता है जहां एक परम सिद्ध फकीर अपनें शिष्य के अन्दर
परम रस भरता है जिस रस में वह कस्तूरी मृग की तरह उस परम गंध की अलमस्ती में नाचता रहता है ।

श्री नानकजी साहिब और श्री कबीरजी साहिब परम सिद्ध संत थे , उनके पास होता ही क्या है जिसका लेंन - देंन
करें - दोनों के पास एक ही होता है -----
एक ओंकार ।

==== एक ओंकार सत नाम =======

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