Thursday, March 25, 2010

श्री ग्रन्थ साहिबजी एवं गीता - 9

सत नाम [ The ultimate truth ]

गीता में सत नाम को समझनें के लिए आप देखें गीता के निम्न सूत्रों को -----
2.16,4.38, 7.4 - 7.6, 7.10, 7.12 - 7.13,
9.4- 9.6, 9.8, 9.19,
10.8, 10.20, 10.25, 10.32,
11.37
13.2, 13.5 - 13.6, 13.12, 13.24,
14.3 - 14.4
15.3, 15.16,
18.40,
आठ अध्यायों के 28 श्लोक क्या कहते है ? इस बात को आप आगे देखेंगे ।
जब कोई देखनें वाला न हो , जब कोई सुननें वाला न हो तब भी जो रहता है , वह है - सत नाम
लाओत्सु कहते हैं - उसका क्या नाम है , मैं नहीं जानता लेकीन काम चलानें के लिए मैं उसे ताओ नाम से पुकारता हूँ और शांडिल्य ऋषि कहते हैं -- नाम तो इशारा मात्र हैं जो अधूरे हैं ।
सैमुअल बैकेट का एक छोटा सा नाटक है - वेटिंग फॉर गोदोद । नाटक का मंचन चल रहा था , तीन दिनों का कार्य क्रम था , बहुत से लोग आ रहे थे , यह जाननें के लिए की गोदोद क्या है , लेकीन नाटक तो समाप्त हो गया पर गोदोद का पता न चल पाया । लोग नाटक कार को घेर लिए और पूछे - गोदोद कहाँ है ? नाटक कार बोला - यदि हमें मालुम होता तो आप देख चुके हुए होते , अब आप सोचें की गोदोद कहाँ है एव कौन है ?
सत नाम की अनुभूति मनुष्य को ज्ञान के माध्यम से तब होती है जब वह साकार माध्यमों से अपनें मन - बुद्धि के परे के आयाम में होता है - यहाँ आप देख सकते हैं गीता - 12.3 - 12.4, 4.38, 13.24, 13.2, 15.3 को ।
एक ओंकार का जप जब मन - बुद्धि को प्रभु पर स्थीर कर देता है तब जो अनुभूति होती है वह है सत नाम की ।
गीता कहता है बिना असत , सत तक पहुँचना कठिन है और सत भावातीत है [ गीता - 18.40, 2.16 ] और
मनुष्य गुणों का गुलाम है एवं गुण प्रभु के मार्ग के अवरोध हैं अर्थात जब तक मनुष्य गुणों के बंधनों से मुक्त नहीं होता तब तक सत नाम उसकी बुद्धि में नहीं बस सकता ।
सत नाम कोई साकार माध्यम नहीं है यह तो सभी साकार माध्यमो के अभ्यास का फल है ।
नामों के जाप से वहाँ पहुँचना जहां नाम नहीं , अब्यक्त भाव हो ....
भावों से वहाँ पहुँचना जहां भावातीत हो ......
गुणों से वहाँ पहुँचना जो निर्गुण है ......
काम से वहाँ पहुँचना जो निर्विकार काम है [ गीता - 7.11]......
जाप से वहाँ पहुँचना जहां जाप करता जाप में बिलीन हो गया हो .....
उसका नाम है -----
सत नाम

====एक ओंकार सत नाम ======

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